Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताऽशातोदयाच्छम, दुःखंचाऽऽत्मोपयोगिनाम् । आत्मानन्दरसास्वाद, श्चैवं स्वानुभवोहृदि ॥२०॥ शातोदयेसमुत्पन्ने, सुखे चाऽऽत्मोपयोगिनाम् : बाह्यसुखे न रागःस्याद्, ब्रह्मानन्दस्यभोगतः ॥२५१॥ पूर्णब्रह्मनिमग्नोऽस्मि, पूर्णब्रह्मस्वरूपतः । उद्गलै पुद्गलास्तृप्ति,यान्तिस्वाऽऽत्मानिजाऽऽत्मना२५२ आत्मनः सत्यतृप्तिस्तु, स्वाऽऽत्मानन्देन जायते; आत्मानन्दरसावाप्तेः पुद्गलेच्छा विनश्यति ॥२५३॥ क्षयोपशमभावीय-, ज्ञानचारित्रयोगतः आत्मन्येव सुखाम्भोधिः स्वयंस्वेनाऽनुभूयते ॥२५४॥ क्षणिकं हृदि विज्ञाय, सर्व वैषयिकं सुखम् ; आत्मानन्दस्यभोगार्थ, मात्मन्येव स्थिरोभव ॥२५॥ अनन्तगुणपर्याय शक्तिरूपं सनातनम् । देहस्थं तं विजानीया, देहाध्यासं भृशं त्यज ॥२५६॥ मा मुद्य जडभोगेषु, किश्चिच्चाऽपि ततः मुखम् । न स्यात्परन्तु दुःखानां, प्राप्तिः पश्चात्समुद्भवेत्॥२५७ भोगाद् रोगादिदुःखाना, पारम्पर्य प्रजायते: भोगे रोगभयोत्पादो, देहनाशोऽल्पसौख्यता ॥२५८॥ जायते च महादुःखं, विश्रान्तिरपि नोद्भवेत् भोगजन्यसुखं दुःख, मेवजानीहि निश्चयात् ॥२५९॥ भुक्ता अनादितो भोगा: प्रत्युत दुःखदाः सदा । ज्ञात्वैवंकामभोगांस्त्वं, त्यजाऽऽत्मसुखनिश्चयात्।।२६०॥ जन्ममृत्यु जरादुःखं, व्याधिदुःन्य पुन भृशम् ; आधिजं सर्व सम्बन्ध-जन्य दुःखमुपाधिकम्॥ २६१ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130