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है कि जहाँ वे 'अथवा' से प्रारंभ होते हैं वहाँ मूल के शब्दों का एक दूसरा अनुवाद दिया जा रहा है और जहाँ ‘अर्थात्' से वहाँ कोष्ठक-पूर्ववर्ती बात का ही स्पष्टीकरण अथवा विशदीकरण किया जा रहा है । टिप्पणियों में निर्दिष्ट 'टीकाकार' से आशय है जिनेश्वरसूरि से जिन्होंने 'अष्टक' पर टीका लिखी है तथा जिनकी इस टीका को उनके शिष्य अभयदेवसूरि ने 'प्रतिसंस्कृत' किया है।
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