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'पुण्य को जन्म देने वाला पुण्य' आदि
गेहाद गेहान्तरं कश्चिच्छोभनादधिकं नरः ।
याति यद्वत् सुधर्मेण तद्वदेव भवाद् भवम् ॥१॥ जिस प्रकार कोई मनुष्य एक शोभन घर से शोभनतर घर में जाता है उसी प्रकार वह शुभ धर्म के पालन से (अर्थात् पुण्य को जन्म देने वाले पुण्य के फलस्वरूप) एक शोभन जन्म से शोभनतर जन्म में जाता है।
(टिप्पणी) प्रस्तुत चार कारिकाओं में आचार्य हरिभद्र ने चार प्रकार के जन्म-परिवर्तनों की तुलना चार प्रकार के गृह-परिवर्तनों से की है और इन चार प्रकार के गृह-परिवर्तनों का कारण उन्होंने बतलाया है चार प्रकार के कर्मार्जनों को । इन चार प्रकार के कर्मार्जनों के स्वरूप का विशेष स्पष्टीकरण टीकाकार के अनुसरण पर किया जा रहा है। संक्षेप में आचार्य हरिभद्र का आशय यह है कि (i) कुछ शुभ 'कर्म' शुभ 'कर्म' के अर्जन का कारण बनते हैं, (ii) कुछ शुभ 'कर्म' अशुभ 'कर्म' के अर्जन का, (iii) कुछ अशुभ 'कर्म' अशुभ 'कर्म' के अर्जन का, और (iv) कुछ अशुभ 'कर्म' शुभ कर्म के अर्जन का ।
गेहाद् गेहान्तरं कश्चिच्छोभनादितरन्नरः ।
याति यद्वदसद्धर्मात् तद्वदेव भवाद् भवम् ॥२॥
जिस प्रकार कोई मनुष्य एक शोभन घर से अशोभन घर में जाता है उसी प्रकार वह अशुभ धर्म के पालन से (अर्थात् पाप को जन्म देने वाले पुण्य के फलस्वरूप) एक शोभन जन्म से अशोभन जन्म में जाता है ।
गेहाद् गेहान्तरं कश्चिदशुभादधिकं नरः ।
याति यद्वन्महापापात् तद्वदेव भवाद् भवम् ॥३॥ जिस प्रकार कोई मनुष्य एक अशोभन घर से अशोभनतर घर में जाता है उसी प्रकार वह महापाप करने से (अर्थात् पाप को जन्म देने वाले पाप के
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