Book Title: Astaka Prakarana
Author(s): K K Dixit
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 128
________________ मोक्ष कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षो जन्ममृत्य्वादिवर्जितः । सर्वबाधाविनिर्मुक्त एकान्तसुखसंगतः ॥१॥ सब 'कर्मों' का नाश होने पर एक व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, उस मोक्ष की जो जन्म, मृत्यु आदि (क्लेशों) से शून्य है, जो सब प्रकार की बाधाओं से शून्य है, जो सर्वथा सुख से सम्पन्न है । (टिप्पणी) यह एक जैनमान्यता है कि मोक्ष के समय एक आत्मा में . सभी दुःखों का अभाव ही नहीं रहता बल्कि एक परमोत्कृष्ट प्रकार का सुख भी रहता है। यन्न दुःखेन संभिन्नं न च भ्रष्टमनन्तरम् । अभिलाषापनीतं यत् तज्ज्ञेयं परमं पदम् ॥२॥ सबसे उत्कृष्ट अवस्था वह समझी जानी चाहिए जिसमें दुःख का संमिश्रण न हो, जो कालान्तर में समाप्त न हो, जिसमें किसी प्रकार की अभिलाषा के लिए अवकाश न हो । कश्चिदाहान्नपानादिभोगाभावादसंगतम् । सुखं वै सिद्धिनाथानां प्रष्टव्यः स पुमानिदम् ॥३॥ किंफलोऽन्नादिसंभोगो बुभुक्षादिनिवृत्तये । तन्निवृत्तेः फलं किं स्यात् स्वास्थ्यं तेषां तु तत् सदा ॥४॥ इस संबंध में किसी का कहना है कि मोक्ष प्राप्त कर चुकने वाले व्यक्तियों को सुख होता है यह बात बेतुकी है और वह इसलिए कि ये व्यक्ति अन्न, पान आदि भोगों का सेवन नहीं करते । इस आदमी से हमारा पूछना है : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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