Book Title: Astaka Prakarana
Author(s): K K Dixit
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 127
________________ १०४ अष्टक-३१ सूर्य का उदय होने पर जगत् की वस्तुएँ दिखाई नहीं पड़ती; ऐसी ही बात प्रस्तुत प्रसंग में समझी जानी चाहिए । इयं च नियमाज ज्ञेया तथाऽऽनन्दाय देहिनाम् । तदात्वे वर्तमानेऽपि भव्यानां शुद्धचेतसाम् ॥८॥ और जगद्गुरु के इस धर्मोपदेश के संबंध में समझना चाहिए कि वह उस समय (अर्थात् जिस समय वह दिया गया था) प्राणियों को उस उस प्रकार से आनन्द देने वाला नियमतः सिद्ध होता था जबकि आज भी वह शुद्ध चित्त वाले भव्य (अर्थात् मोक्ष के अधिकारी) व्यक्तियों को आनन्द देने वाला नियमतः सिद्ध होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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