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तीर्थंकर का दान सचमुच महान् है
जगद्गुरोर्महादानं संख्यावच्चेत्यसंगतम् ।
शतानि त्रीणि कोटीनां सूत्रमित्यादि चोदितम् ॥१॥ (किसी की शंका है) "जगद्गुरु (तीर्थंकर) के दान को 'महान् दान' कहना तथा उसके संबंध में यह कहना कि वह अमुक संख्या वाला है परस्पर - विरोधी बातें हैं । और 'उन्होंने तीन सौ करोड़ दान दिए' आदि वचन शास्त्र में आए ही हैं।
(टिप्पणी) प्रस्तुत वादी की शंका का आशय यह है कि एक असंख्य दान ही 'महान् दान' कहलाए जाने का अधिकारी है जबकि जैन ग्रंथों में उन उन तीर्थंकरो के संबंध में कहा गया है कि उन्होंने उस उस संख्या वाला दान दिया ।
अन्यैस्त्वसंख्यमन्येषां स्वतंत्रेषूपवर्ण्यते ।
तत्तदेवेह तद्युक्तं महच्छब्दोपपत्तितः ॥२॥ किन्ही दूसरे लोगों ने किन्हीं दूसरे महापुरुषों के संबंध में अपने शास्त्रग्रंथों में कहा है कि उनका दान असंख्य है । अतः दान-चर्चा के प्रसंग में इन्हीं महापुरुषों के दान को 'महान् दान' कहना उचित होगा, क्योंकि इसी दान के संबंध में 'महान्' शब्द का अर्थ ठीक बैठता है ।
ततो महानुभावत्वात्तेषामेवेह युक्तिमत् । जगद्गुरुत्वमखिलं सर्वं हि महतां महत् ॥३॥
__ ऐसी दशा में इन्हीं महापुरुषों की जगद्गुरुता पूर्णता प्राप्त युक्तिसंगत रीति से ठहरती है और वह इसलिए कि ये ही महापुरुष महान् शक्ति वाले सिद्ध हुए, सचमुच, महापुरुषों की सभी बातें महान् हुआ करती है ।
(टिप्पणी) यहाँ 'अखिल' इस शब्द का अर्थ 'दोष-रहित' अर्थात्
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