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अष्टक - २२
तथा मानपात्रता के बीच अन्तर को जानता है, जो गुणियों का अत्यन्त सम्मान करता है, जो दुराग्रह का सर्वथा त्याग करके तथा औचित्यपूर्वक क्रियारत होता है, जो सभी प्रश्नों पर शास्त्रनिष्ठता का प्रदर्शन करता है ।
(टिप्पणी) जैसा कि पहले कहा जा चुका है, जैन परंपरा 'भव्य' यह विशेषण उन आत्माओं को देती है जो स्वभावतः मोक्ष की अनधिकारी हैं । तथा 'अभव्य' यह विशेषण उन आत्माओं को जो स्वभावतः मोक्ष की अधिकारी है । " स्थानमानांतरज्ञ" इस शब्द का अर्थ करना चाहिए 'वह व्यक्ति जो आध्यात्मिक विकास की उच्चावच भूमिकाओं के बीच अन्तर को पहचानता है तथा जो यह जानता है कि इनमें से किस भूमिका वाले व्यक्ति को कितना सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए ।
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