Book Title: Ashtsahastri Part 3 Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh SansthanPage 18
________________ ( १७ ) ज्ञानज्योति प्रवर्तन ४ जून १९८२ को लालकिला मैदान दिल्ली से जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का प्रवर्तन तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के करकमलों से हुआ था। निरन्तर १०४५ दिनों तक इस ज्ञानज्योति का प्रवर्तन सम्पूर्ण भारतवर्ष के नगर-नगर में हआ जिससे अहिंसा, चारित्र-निर्माण एवं विश्वबन्धुत्व का ब्यापक प्रचार-प्रसार किया गया । इस प्रवर्तन में अनेक प्रान्तों के राज्यपाल, मुख्य मन्त्री, सांसद, कमिश्नर, डी० एम०, एस० डी० एम आदि अनेक राजकीय अधिकारियों का सान्निध्य प्राप्त हआ। दिगम्बर जैन आचार्यों, मुनियों, आयिकाओं और भट्टारकों का भी स्थान स्थान पर आशीर्वाद व सान्निध्य प्राप्त हआ। प्रवर्तन में तत्कालीन सांसद श्री जे० के० जैन का सराहनीय सहयोग समय-समय पर प्राप्त होता रहा। ज्ञानज्योति को हस्तिनापुर में अखण्ड स्थापना १०४५ दिनों तक सारे भारतवर्ष में प्रवर्तन के बाद ज्ञानज्योति की अखण्ड स्थापना २८ अप्रैल १९८५ को जम्बूद्वीप मेन गेट के ठीक सामने स्थाई तौर पर हस्तिनापुर में कर दी गई है। यह स्थापना श्री जे. के. जैन सांसद की अध्यक्षता में तत्कालीन रक्षामन्त्री भारत सरकार श्री पी० वी० नरसिंह राप के करकमलों से हुई थी। जम्बूद्वीप स्थल पर भव्य दीक्षायें : पू० गणिनी आर्यिकारत श्री ज्ञानमती माताजी के शिष्य एवं शिष्याओं के दीक्षा समारोह भी जम्बूद्वीप स्थल पर समय-समय पर आयोजित किये गये हैं। सर्वप्रथम संघस्थ ब्र. श्री मोतीचन्द जैन, सनावद (म० प्र०) की क्षुल्लक दीक्षा का कार्यक्रम ८ मार्च १९८७ को सम्पन्न हआ। यह दीक्षा आचार्यश्री विमलसागर जी महाराज के कर-कमलों से सम्पन्न हुई थी। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम क्षुल्लक मोतीसागर रखा गया । द्वितीय दीक्षा समारोह कु० माधुरी शास्त्री जो कि पू० ज्ञान नती माताजी की शिष्या एवं गृहस्थावस्था की लघु भगिनी हैं उनकी दीक्षा १३ अगस्त १९८६ को विशाल स्तर पर सम्पन्न हुई । गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के कर-कमलों से दीक्षा प्राप्त करके आर्यिका चन्दनामती नाम रखा गया । तृतीय दीक्षा ब्र० श्यामाबाई की १५ अक्टूबर १९८६ को सम्पन्न हुई। पू० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के कर-कमलों से उन्हें क्षुल्लिका दीक्षा प्रदान करके क्षुल्लिका श्रद्धामती नाम रखा गया। इस प्रकार दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान में विभिन्न बहमुखी योजनायें चल रही हैं, जिनमें भारतवर्ष के समस्त दिगम्बर जैन समाज का सहयोग प्राप्त होता रहता है। हस्तिनापुर का संक्षिप्त परिचय : ___ जैन पुराणों के आधार से हस्तिनापुर बहुत प्राचीन एवं ऐतिहासिक नगरी है । जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव का प्रथम आहार इसी भूमि पर हुआ। उसी दिन से एक प्रकार से यह दानतीर्थ प्रवर्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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