Book Title: Ashtsahastri Part 3 Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh SansthanPage 16
________________ जम्बूद्वीप स्थल पर ही यात्रियों, शोधाथियों, पर्यटकों के लिये २०० से अधिक कमरों व फ्लेटों का निर्माण हो चुका है । तीन मूर्ति मन्दिर का निर्माण हुआ है, जिसमें तीन वेदियां हैं । मुख्य वेदी में भगवान् आदिनाथ, भरत व बाहबली की मूर्ति विराजमान है तथा अगल-बगल की वेदी में भगवान पार्श्वनाथ एवं भगवान नेमीनाथ की प्रतिमा विराजमान हैं, भगवान् महावीर स्वामी का नया कमल मन्दिर बन रहा है, जिसका कलशारोहण व वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव मई १९९० में होने जा रहा है, इसके अलावा साधुओं के रहने के लिये रत्नत्रय मिलय, कार्य संचालन के लिये कार्यालय एवं पानी की सुविधा के लिये टंकी भी बनाई जा चुकी है। अन्य निर्माण कार्य भी योजनानुसार चल रहे हैं, जिनका वर्णन भविष्य में समाज के समक्ष प्रस्तुत होगा। शैक्षणिक गतिविधियां निर्माण के अतिरिक्त संस्थान के द्वारा शिक्षा एवं धर्म प्रचार का कार्य भी समय-समय पर होता रहा है। शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर, सेमिनार, अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार आदि के आयोजन भी कई बार किये जा चुके हैं। सम्यग्ज्ञान मासिक पत्रिका का प्रकाशन पृ० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित चारों अनुयोगों से युक्त एवं धर्म प्रभावना के समाचारों से सहित सम्यग्ज्ञान मासिक पत्रिका का प्रकाशन जुलाई १९७४ से इसी संस्थान के अन्तर्गत प्रारम्भ किया गया था, जिसका विमोचन १० पू० आचार्यश्री धर्मसागर जी महाराज के कर-कमलों से ऐतिहासिक दिगम्बर जैन लाल मन्दिर दिल्ली में १ जुलाई १६७४ को किया गया था। भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त में लगभग सभी नगरों में इस पत्रिका के सदस्य हैं तथा पिछले १६ वर्षों से मासिक पत्रिका का प्रकाशन निर्बाध रूप चल रहा है। वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला संस्थान के अन्तर्गत वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला की स्थापना सन् १९७४ में गई, जिसमें प्रथम पुष्प के रूप में अष्टसहस्री के एक भाग का प्रकाशन १६७४ में हुआ था। उसके बाद पू० ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित लगभग १०० से अधिक ग्रन्थों का प्रकाशन अब तक हो चुका है । बच्चों के लिये बाल विकास (चार भाग) एवं इन्द्रध्वज मण्डल, कल्पद्रुम मण्डल विधान आदि अनेक प्रकाशन अत्यन्त लोकप्रिय रहे हैं। इसी ग्रन्थमाला से यह ग्रन्थ भी प्रकाशित करने का हमें गौरव प्राप्त हुआ है। विद्यापीठ सन् १९७६ में पू० माताजी की प्रेरणा से जम्बूद्वीप स्थल पर भाचार्यश्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ का शुभारम्भ हुआ, जिसके अन्तर्गत धार्मिक अध्ययन के साथ-साथ लोकिक अध्ययन की सुविधा भी प्रदान की गई हैं । अब तक इस विद्यापीठ से पढ़कर कई विद्वान् समाज सेवा में संलग्न हो चुके हैं । जम्बूद्वीप पारमाथिक औषधालय नवम्बर १९८५ से जम्बूद्वीप स्थल पर निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधालय भी प्रारम्भ किया गया है, जिसमें राजवैद्य शीतलप्रसाद एण्ड सन्स दिल्ली के सौजन्य से औषधि प्राप्त होती रहती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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