Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 6
________________ परंपरा और क्रांति दोनों से मुक्त हुं ऐसाक्रांतिकारी हूं। मेरी क्रांति क्रांति से भी गहरी जाती है। क्योंकि मैं देख पाता हूं कि क्रांति और परंपरा तो दिन और रात जैसे हैं। हर दिन के बाद रात, हर रात के बाद दिन। हर क्रांति के पीछे परंपरा, हर परंपरा के पीछे क्रांति। यह अनवरत श्रृंखला है। मैं तो साक्षी मात्र हूं। जो जैसा है उसे तुमसे वैसा कह रहा हूं। मैं कोई लेनिन और मार्क्स और क्रोपाटीकन जैसा क्रांतिकारी नहीं हूं जो परंपराविरोधी हैं। न मैं परंपरावादी हूं, मनु, याज्ञवल्लव इन जैसा परंपरावादी भी नहीं हूं जो क्रांतिविरोधी हैं। मैं तो देखता हूं कि क्रांति और परंपरा दोनों जरूरी हैं। हो क्रांति बार-बार, आये परंपरा बार-बार। बने परंपरा, मिटे परंपरा, फिर हो क्रांति। और यह सतत हो। न तो ज्यादा देर क्रांति रुके; क्योंकि ज्यादा देर क्रांति रुक जाये तो अराजकता हो जाती है। न ज्यादा देर परंपरा रुके, क्योंकि ज्यादा देर परंपरा रुक जाये तो मरघट हो जाता है। सब समय पर हो, सब अनुपात में हो। परंपरा क्रांति में संघर्ष चलने दो आग लगी है तो सूखी टहनियों को जलने दो मगर जो टहनियां आज भी कच्ची और' हरी हैं उन पर तो तरस खाओ मेरी एक बात तुम मान जाओ परंपरा जब लुप्त हो जाती है लोगों की आस्था के आधार टूट जाते हैं उखडे हुए पेड़ों के समान वे अपनी जड़ों से छूट जाते हैं तो परंपरा बिलकुल लुप्त नहीं हो जानी चाहिए, नहीं तो लोग जडहीन हो जाते हैं, बेजडू हो हैं, उखड़े हुए हो जाते हैं। उनको समझ ही नहीं पड़ता कि अब कहां जायें, क्या करें, कैसे उठे, कैसे बैठे। उनका संतुलन खो जाता है। उनकी दिशा खो जाती है। उनके लिए मार्ग नहीं बचता। वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। जीवन के चौराहे पर पागल की तरह, विक्षिप्त की तरह यह। -वहां दौड़ने लगते हैं। कोई गंतव्य नहीं रह जाता। तो परंपरा बिलकुल न टूट जाये, नहीं तो जड़ें उखड़ जाती हैं। और परंपरा इतनी मजबूत न हो जाये कि बीज टूट ही न सके, नहीं तो वृक्ष छिपा रह जाता है। जीवन इन विरोधाभासों के बीच संतुलन का नाम है, समता का नाम है। और जब भी जीवन संतुलन को उपलब्ध होता है, जहां परंपरा अपना काम करती है, और क्रांति अपना काम करती है, और जहां परंपरा और क्रांति हाथ में हाथ डालकर चलती हैं वहां जीवन में छंद पैदा होता है, गीत पैदा होता है। जहां परंपरा और क्रांति साथ-साथ नाच सकती हैं। यही मेरी चेष्टा है। तो एक तरफ क्रांति की बात करता हूं दूसरी तरफ शास्त्रों को पुनरुज्जीवित करता हां तुम्हें इसमें विरोध दिखेगा, क्योंकि तुम्हें पूरा जीवन दिखाई नहीं पड़ता। मुझे पूरा जीवन दिखाई पड़ता है,

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