Book Title: Arhadgita
Author(s): Meghvijay, Sohanlal Patni
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 5
________________ अध्याय २११ २१९ २२७ २३५ २५२ २३ ध्यानादि की आवश्यकता २४ गुरू परमात्मा स्वरूप है २५ परभेष्ठिस्वरूप ॐकार संकीर्तन .... २६ ॐकार में परमात्मा . २७ परमात्मस्वरूप २८ सद्गुरू में श्रद्धा से सद्धर्मप्राप्ति २९ मातृका अर्ह वाची ३० अकार से वीतराग का ग्रहण .... ३१ अर्हत् स्वरूप ३२ अकार में तीर्थंकरों की सिद्धि .... ३३ वर्णमातृका से परामातृका .... ३४ व्यञ्जन भी अर्हद्वाची हैं .... ३५ वर्णमातृका में लोक स्वरूप .... ३६ सदाचरण धर्म का स्वरूप .... २६० २६८ २७६ २८६ २९६ ३२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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