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अध्याय
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२५२
२३ ध्यानादि की आवश्यकता २४ गुरू परमात्मा स्वरूप है २५ परभेष्ठिस्वरूप ॐकार संकीर्तन .... २६ ॐकार में परमात्मा . २७ परमात्मस्वरूप २८ सद्गुरू में श्रद्धा से सद्धर्मप्राप्ति २९ मातृका अर्ह वाची ३० अकार से वीतराग का ग्रहण .... ३१ अर्हत् स्वरूप ३२ अकार में तीर्थंकरों की सिद्धि .... ३३ वर्णमातृका से परामातृका .... ३४ व्यञ्जन भी अर्हद्वाची हैं .... ३५ वर्णमातृका में लोक स्वरूप .... ३६ सदाचरण धर्म का स्वरूप ....
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