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________________ प्रकाशकीय निवेदन हमारे पूर्वाचार्यों, मुनियों एवम् विद्वानों ने अध्यात्म, तत्त्वज्ञान, योग, क्यान, न्याय, ज्योतिषादि विषयों का साहित्य विपुल प्रमाण में रचा । यह साहित्यिकी रोहर हजारों वर्षों से आज भी ज्ञान भंडारों में ताड़पत्रों एवं हस्तलिखित पत्रों पर विद्यमान है। इस विविध प्रकार के श्रुत ज्ञान को जन-जन तक पहुंचा कर जैन संस्कार को पुष्ट करने का, इस संस्था के संस्थापक स्व. सेठ श्री अमृतलालभाई दोशी ने संकल्प किया । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये आपने सन् १९४८ में जैन साहित्य विकास मंडल ' की स्थापना की और अनुसंधान कार्य का प्रारंभ किया । फलतः आपके योग्य संचालन में संस्थाने उनके जीवन काल में आवश्यक सूत्र, मंत्र, ध्यान, योगादि विषयों के मौलिक व प्रमाणभूत ३० ग्रंथों का प्रकाशन किया, जिनकी जैन संघ ने बहुत सराहना की और बड़े उत्साह के साथ अपनाया । इसके अलावा और कई रचनाएं तैयार करवाईं, जिनका हम प्रकाशन कर रहे हैं । प्रस्तुत ग्रंथ 'अर्हद्गीता' के संपादन व प्रकाशन की योजना आपने सात आठ वर्ष पहले बनाई थी, परन्तु अन्य प्रकाशनों में व्यस्त रहने के कारण उनके जीवन काल में इसका प्रकाशन न हो सका । आज इसको प्रकाशित कर हम उनके प्रयत्नों की संपन्नता का संतोष अनुभव कर रहे हैं । 1 मनुष्य बहुत बुद्धिशाली है। उसने प्रकृति के रहस्योद्घाटन में कोई कोर कसर नहीं रखी । अणु विभाजन से चंद्रमा की धरती पर पैर रखने तक का सामर्थ्य बताया । परंतु उसकी आत्मा कुंठित हो गई है । भौतिकवाद / समृद्धिवाद उस पर हावी है । फलतः आध्यात्मिक मूल्यों का तेज़ी से ह्रास हो रहा है। वह विवेक शून्य हो गया है । स्वयं को नष्ट करने पर तुला हुआ है। इस दौड़ को रोकने का एक मात्र मार्ग आध्यात्मिक मूल्यों को फिर से प्रतिष्ठित करना है, और वह आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा ही हो सकता है । भगवान् महावीर के बताये हुए मार्ग पर चलने की अनिवार्यता स्वीकारना ही होगा । उपाध्याय मेघविजयजी जैसे प्रकांड विद्वान की समर्थ लेखनी से रचित आध्यात्मिक कृति ' अर्हद्गीता' उसकी पूर्ति करने में सफल होगी, ऐसी हमारी श्रद्धा है । डॉक्टर सोहनलालजी पटनी ने ग्रंथ का बहुत ही परिश्रम पूर्वक संपादन किया और प्रकाशन के दौरान सहयोग दिया है, उसके लिए हम उनके बहुत ही कृतज्ञ हैं । जुलाई, १९८१ निवेदक चंद्रकांत अमृतलाल दोशी ज्योत, इर्ला, विले-पार्ले. मे. ट्रस्टी ११२, स्वामी विवेकानंद मार्ग, बंबई - ४०० ०५६ जैन साहित्य विकास मंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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