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अनुसन्धान-६४ जाति छन्द पैद्य १-९, दोहा १, एक संस्कृत वसन्ततिलका छन्द, चन्द्रायणा में एक पद्य में, लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के जिनमन्दिर, उपाश्रय, बाजार, श्रेष्ठीवर्ग का सुन्दर वर्णन किया गया है। कौशलदेश स्थित लखनऊ का श्रेष्ठ वर्णन भी किया है । इसके पश्चात् दोहा १-५, छन्द जाति भुजंगी ८, कवित्त १, दोहा ५, अमृतध्वनि छन्द २, दूहा १, छन्द ८, निसाणी ९, दूहा ७, छन्दजाति त्रिभङ्गि ११ में श्रीजिनाक्षयसूरि पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरि के गुणवर्णनों से ओत-प्रोत है । ओसवंशीय केसरदे के पुत्र के गुणगणों का, आचार्यपदस्थित गुणों का वर्णन करते हुए, मूलराय का और यादवकुलीय रायसिंह का वर्णन किया गया है । मूलराय और रायसिंह सम्भव है लखनऊ के अधिकारी होंगे, जो कि आचार्यश्री के भक्त थे ।
तत्पश्चात् लक्ष्मणपुरी का संस्कृत भाषा में अनुष्टब् छन्द में २८ पद्यों में वर्णन किया गया है । इसमें कहा गया है कि दशरथ के पुत्र राम का लक्ष्मण के प्रति बहुत स्नेह था इसीलिए लक्ष्मणपुरी बसाई गई । नगर की बड़ीबड़ी हवेलियों का, अग्निहोत्रीय ब्राह्मणों का, शतघ्नियुक्त युद्धविशारदों का, हाथियों का, ध्वजासंयुक्त देवमन्दिरों का, गोमती नदी का, उद्यानों का, ऋषियों का सुन्दर सा वर्णन किया गया है और निवेदन किया गया है कि आप जयपुर नगर पधारिए, यहाँ के भक्त आपके दर्शनों के लिए तरस रहे हैं । ____तत्पश्चात् जयपुर का संस्कृत अनुष्टुप् छन्द में ६७ पद्यों में काव्यरूढी के अनुसार सुन्दरतम वर्णन है । भगवान पार्श्वनाथ को नमस्कार कर वर्णन प्रारम्भ किया गया है जिसमें कहा गया है कि सूर्यवंशीय सवाई जयसिंह ने यह नगर बसाया था । यूपद्वारों से अलङ्कृत, कदलीवनों से शुभित, मृगादि पशुओ से वेष्टित, वेदीमण्डल से मण्डित, अग्निकल्प ऋषियों से सेवित, चारों तरफ पर्वतों से वेष्टित, जलप्रपातों से युक्त, हंस आदि पक्षियों से सेवित, सुन्दर राजमार्ग, व्यापारियों से युक्त, दुर्ग और परिखा से संयुक्त, शतघ्नि आदि अनेक यन्त्रों से युक्त, पवित्र ध्वजाओं से तोरणों से युक्त, हाथी-रथ इत्यादि से अलङ्कृत, देवायतनों से विराजमान, विद्वानों से सेवित, वेणू-वीणा इत्यादि वाद्यों से रात-दिवस उत्सवयुक्त, ब्रह्मघोष शब्द से युक्त, बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं से युक्त, बड़े-बड़े चौराहों से मण्डित, स्वाहा इत्यादि ब्रह्मघोषों से सुशोभित
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