Book Title: Anusandhan 2014 08 SrNo 64
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जुलाई - २०१४
२५७
वदनकमल दीपै भलौ जी, सुन्दर ससि सम भाल; गजगति चाल सोहामणी रे, वांणी अमिय रसाल.... श्रीसौ०.... ६ धन जननी जिण जनमीया रे, धन्य पिता कुल वंश; धन्य सुगुरु जिण दीखीया रे, प्रगट्यौ कुल अवतंस... श्रीसौ०.... ७ विचरै सदगुरु जिण दिसै रे, सो दिस गिणीयै धन्न प्रह ऊठीनैं नित नमैं रे, सो श्रावक धन धन्न..... श्रीसौ०.... ८ सांभल सदगुरु देशना रे, श्रवणाञ्जलिपुटपांन; प्रगटै ग्यांन अमन्दता रे, आनन्द अधिक अमांन.... श्रीसौ०.... ९ निज पद प्रभुता सांभली रे, प्रगट्यौ चित्त उमाह; नयणे सदगुरु निरखीयै रे, करीयै अधिक उच्छाह.... श्रीसौ०.... १० संघसकल सुभ भावसूं जी, लेख लिख्यौ चित्त लाय; वहिला पूज पधारज्यो जी, करज्यो संघ सवाय... श्रीसौ०... ११ सुगुरु चरणरज फरसतां रे, करस्यां निरमल तन्न; धरस्यां समकित वासना रे, गिणस्यां आतम धन्न.... श्रीसौ०.... १२ सूहव नार सुहामणी रे, हिलमिल झाकझमाल; गासी गीत वधामणा रे, भर मुक्ताफल थाल.... श्रीसौ०.... १३ मुनिवर साथे मल्हपता रे, श्रावक सहू समुदाय; पग पग उच्छव कीजतां रे, पूजजीनै लेस्यां वधाय.... श्रीसौ०.... १४ श्रीजिनहर्ष पटोधरू रे, प्रतपौ जिम जग भांण; चिर जीवौ गुरु गछपती रे, वरतौ संघ कल्याण... श्रीसौ०.... १५ .
॥ इति ॥
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