Book Title: Anusandhan 2014 08 SrNo 64
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
२५८
अनुसन्धान-६४
रतलामथी श्रावक मगनीराम वरमेचाए लखेल नागपुरमा विराजमान श्रीसुखलालजी (सौख्यविजयजी) महाराज उपर विनयपत्रिका (विज्ञप्ति).
- सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय आ विज्ञप्तिपत्रनी शरुआतमां मंगलरूपे पांच भगवाननी स्तुति, गौतमस्वामीनी स्तुति तथा वाग्देवीनी स्तुति करवामां आवी छे. त्यारबाद नागपुर (नागौर) नगरमां बिराजमान गुरुभगवन्त श्रीसुखलालजी महाराजने विविध अनेक विशेषणो-पूर्वक वन्दना करवामां आवी छे.
ते पछी गुरुभगवन्तने 'वहेला दर्शन आपो' एवी विनंति करवामां आवी छे, अने छ महिनामां जे अविनय-आशातना थयां होय तेनी क्षमा मागी छे.
त्यारबाद २९ दूहामां गुरुभगवन्तनी स्तुति, वन्दना, पोतानो उद्धार करवानी विनन्ति, पत्रनो जवाब आपवा विनन्ति तथा क्षमापना करी छे, अने साथे ज पत्र- समापन कयुं छे. लेखनी भाषा हिन्दी छे. ___आ विज्ञप्तिपत्र रतलाम नगरथी श्रावक श्रीमगनीराम वरमेचाए लखेल छे. लेखन, संवत् १९४२ना श्रावणमासना कृष्णपक्षनी ... तिथिए रविवारना दिवसे धनिष्ठ नक्षत्रमा प्रात:काले, थयुं छे. पत्रलेखक नागपुरवाला ब्राह्मण नेनसुख छे. लेखनस्थल, रतलाममा जानकीदासना मंदिर पासे - एम निर्देश्युं छे.
पत्र पूर्ण थया बाद विविध श्रावकोनी हस्ताक्षरपूर्वक वन्दना जणाववामां आवी छे.
॥ ८०॥ श्रीसिद्धचक्राय नमः ॥ गौतमाय नमः ॥
अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिता:० ॥१॥ शार्दूलविक्रीडितच्छन्दः ॥ सद्भक्त्या नतमौलि० ॥२॥ विपुलनिर्मलकीर्ति० ॥३॥ द्रुतविलम्बितच्छन्दः ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298