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जुलाई - २०१४
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दावल पीरकुं देख्याक, परचा जाहिका पेख्याक, मनोहर मेडत्याक चास, देखण दिलमें है प्यास देख्या देहरा अति चंग, सुंदर सिखर है उतमंग, फरती ध्वजा ही फररान, कंचन कलस ही सिर-ठान, दरसें अभीनंदन देव, सुर नर करे ज्याकी सेव, पटणी लालजी हर्षेक, पैसे धर्महित खरचेक, जालिम भगतमें भये नाम, कुलध्रम कीए उत्तम काम,
दोहा गढकी सोभा देखतां, मन पाये विश्रांम, विध हद घांणोराव री, वडी वधारण मांम. १ ऊंचा अति असमांनसे, वणिया वेस बुरज्ज, कलै काम जुडियां थका, सखरी सरै गरज्ज. २
॥ तो गजल ॥ जुगतें गढळू जोयाक, मनडा मौजसें मोह्याक, ज्याका जोर हैं इतमांम, सुंदर वडे इंदरधांम. ३ सब ही जनसका सामान, खाईविकर देखीआंन, आगे देखीइ अति पास, घांची कुंभारांका वास, देखे देव ध्रमके थान, ज्याका बड़ा है जस नाम, तहां फुनि वसै हैं रजपूत, रजवट राखणें मजबूत, माली लखारादिक थोक, सवे बसे केई लोक, तिहां केई लखे सुंदर थांन, ऊहांके वड वडे वाखांन, अब फिर देखणें बाजार, आये हुंस इंदरधार, परतिख पसारीकू पेख, हट्टां थट्ट ही अरु देख, देखी नंदवांणा पौल, इंदर जौख गौंखां औल, वसियो सिलावटकौं वास, पढिये सिल्पके अभ्यास, आगे देखीए भडभुंज, सेके सस्य ही के गंज, देखे वरणीये लोहार, चंगी करत वस्त्राधार, मोची मौंजसें बैठेक, पनही करत ही दीठेक,
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