Book Title: Anusandhan 2014 08 SrNo 64
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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२४४
अनुसन्धान-६४
दरसण तेहनों देखवा गुरु म्हारों, वली अम पावन काज हो, पाउधारेज्यो पूज्यजी " ", गिरुआ गुण गछराज हो. २१ .
हार रो हीरो..... विजयधर्मसूरिपाटवी गुरु म्हारों, विजयजिनेंद्रसूरीस हो, चिरं जीवों कहें मुक्तिनो ", गौतम द्यै आसीस हो. २२..
हार रो हीरो.....
॥ अथ काव्य ॥ हंसा स्मरन्ति सततं मनसा यथैव, श्रीमानसं वनगजा वरनर्मदाया(:) । तीरं च निर्मलधियां(यो) मुनयो मनोज्ञा(:), तद्वत् स्मरामि भवतां गुणरत्नराशिम्
.. ॥१॥ यथा स्मरन्ति(ति) गो(गौः)वत्सं, चक्रवाकी दिवाकरम् । सती स्मरति भर्तारं, तथाऽहं तव दर्शन(म्) ॥२॥ गयणांगण कागल करूं, लेखण करूं वनराय, सायर करूं मसी तणां, तो हि तुम गुण लिख्या न जाय. ३ अरधनांम नृपद्वारको, धुर कागलको तात, जब होवेंगे रावरे, तब सुख पामे गात. ४
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