Book Title: Anusandhan 2014 08 SrNo 64
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 270
________________ जुलाई - २०१४ २४७ समे समे उतपात्-वयना जाण, उतसर्ग-अपवादरूप सुध मार्गना चालणहार, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावरूप चोभंगीये करि नवतत्व षद्रव्यना जाण, हेय-ग्नेयउपादेरूप सर्व वस्तुना पदार्थना जाणणहार, षट् कारकरू. तत्त्वातत्त्वना जांण, पंच समवायंगरूप अनेक वस्तुना जांण, नईगमादी सात न:, अठावीस उपनय, सातसे भांगे करी सर्व सब्दना जांण, दुहा सुण प्रांणी मन लायके, चेत चेत चित्त चेत, समज समज गुरुको सबद, ईह तेरो हित हेत. १ सुख सारु समजै सबद, समज न भुलेइं रंच, तु मुरत नारायणी, उवे तो खग तीब्रूच. २ हुइ तुहैरि जगतमे, घटकी आंखे खोल, तुला संवार विवेककी, सबद जुहायर तोल. ३ सबद जुहवैरी सबद गुरु, सबद-ब्रमको खोंज, सबाद]गु नगर भित सबदमइ, समझ सबदको चोज ४ समज सके तो समज अब, हे दुरलभ नरदेह, फिर एह संगत कब मिले, तु चातुरक हु मेह. ५ एणी रीते अनेक प्रकारे भव प्रांणीने देशना दैइ संसारसमुद्रथकी तारणहार । दुहा जीम वरसे विरषा समय, मेह अखंडीत धारा, तीम सदगुरु वाणी खरै, जगतजीवना हितकारा. ६ श्लोक जिणेंद्रप्रणी(णि)ध्या(धा)नेन, गुरूणं(णां) च वन्दनं चैव । नीच्चचिष्ट(?) चीरं पापं, छीद्रहस्तो(स्ते) ज(य)थोदकम्. ७ पांच वरत धरे सदा, संजम सत्तर प्रकार, ब्रमचरिज नव वारसु, दश जतीधरम उदार. ८ तप द्वादश भेदे करे, दश वइयावच त्रीण तत्त्व, जीत्ते क्रोधादीक चउ, ए चरण-सीत्तरी सत्व. ९ पांच सुमती बारें भावना, यम्यादीक चउ जेह, पंचविश परलेहण सदा, त्रण गुपती धरे नेह. १० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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