Book Title: Anusandhan 2014 08 SrNo 64
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 191
________________ १६८ अनुसन्धान-६४ पत्रमा १ थी ३६ एम चडता आंके गुरुना गुणोनुं वर्णन छे ते विविध पत्रोमां सामान्य छे तेथी, तेमज नाम आगळ 'श्री'नी लांबी भरमार छे तेथी ते आमां छापवान टाळ्युं छे. जोडणीनी तथा संस्कृतनी अशुद्धिओ जेमनी तेम राखेल छे. स्वस्तिश्रीशर्मधामा त्रिभुवनविजयी दुष्टकर्मारिवर्मा, श्रेयस्सौभाग्यदाई शिवरमणीवर: पुण्यपीयूषपूर्णः । । जीयाच्छ्रीशान्तिनाथस्स सकलभविकान् कल्पशाखी कलौ यो, स ध्येयः शुद्धचेता(ता:) प्रशमरसनिधिर्विघ्नव्यूहापहारी ॥१॥ श्रीस्थम्भतीर्थे श्रीसकलविद्वज्जन-विद्याविनोदसञ्जातप्रमोदामृतवर्षनिष्पन्नसमस्तप्रशस्तमदनस्थित-भव्यवरपुण्डरीकवन-नवघनाघनन(नि)भान्, सर्वसश्रीमदर्हत्परमेश्वरवन्दनाविदसञ्जात-सप्तत्त्व-नवपदार्थ-षड्द्रव्य-पञ्चास्तिकायविचारचातुरीचमत्कृतचतुर्विधसंघसमाच्चरितयश:कीर्तिपुण्यगुणकीर्त्तिनं (कीर्तीन्), मन्दाकिनीप्रवाहपवित्रित-त्रैलोक्यसंस्थितपदार्थसार्थसमर्थवा(का?)न्, वाग्विलासानुरञ्जित सरस्वतीयनक्रीडाम्बुजसञ्चच्चि(चि)चरणजुगलान्, कुवादिमते[भ]कुम्भस्थलविदारणैकहर्यक्षान्, षट्त्रिंशतिमूलगुणोपेतान्, पञ्चमहाव्रतधुराधुरणधौरेयात्(न्), अष्टप्रवचनमातृकाप्रतिपालक(न)समर्थान्, केवललक्ष्मा(भ्या)दिआश्लिष्टैकोत्सुकचित्तान् इत्यादिगुणगणालङ्कृतशरीरान्... . ____ कुमतीना उथापनहार, मिथ्यामतना नीकंदनहार, जिनशासन उद्योतकारी छो। जिनशासनना प्रभावकारी छो । एहवा छत्रीस छत्रीस गुणें करी विराज्यमांन । पुनः ज्ञानादिरत्नत्रयसमाराधनसमर्जित-हीरक्षीरोज्ज्वलकीर्तिपरिमलसू(सु)रभिकृतदिगन्तान्, विशिष्ट(ष्ट)शिष्टि(ष्टा)चारप्रतिपालनप्रवीणान्, दुर्वादिकुम्भस्थलविदारणपञ्चास्यपराक्रमान्, सज्जनमनःकुमुदोल्लासनपार्वणसुधाकरान्, षद्रव्यपञ्चास्तिकायअष्टप्रवचनमातृकाप्रतिपालने समर्थान्, मनोज्ञमधुकरवाक्यान्, संसेव्यचरणकमलान् पुनः इति ॥१॥ सिवसुख आपे हो एहवा गणधरु, श्रीविवेकचंदसूरिस । नाम जपंता पातिक सवि टलई, पूरई मनह जगीस ॥ सिव० ॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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