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जुलाई - २०१४
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(१९) पार्थचन्दगच्छीय आ. श्रीविवेकचदसूरिजी पर राजनगरथी लखाएल विज्ञप्तिपत्र
- सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री . सं. १८४२ना कारतक महिने अमदावाद-राजनगरथी लखायेलो आ चित्रयुक्त विज्ञप्तिपत्र तत्कालीन श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिगच्छमां थयेला आ.श्री विवेकचन्द्रसूरिजी म. उपर लखायो छे.
ओसवालवंशमां थयेला मूलचंदजी पिता अने लाछलदे मातानी कुक्षिना रत्न समा आ पूज्यश्री खम्भातमां बिराजमान हता, त्यारे लखायेलो आ पत्र छे.
मात्र सामान्यपद्धतिथी सीधो सादो लखातो एवो आ पत्र नथी. आमां, संस्कृत अने गुजराती बन्ने भाषामां गद्यात्मक-पद्यात्मक लेखपद्धतिथी तेमज प्रारम्भमां चित्रो द्वारा वैविध्य आव्युं छे. पद्यमा ४ गुजराती गेय रचनाओ - भास वि. अलग-अलग देशीमां रचायेली ढाळो रसाळ छे. ___प्रारम्भमां संस्कृत विशेषणोथी गुरु भ.ने नवाज्या छे. पछी एकथी ३६ छत्रीसना अंक प्रमाणे गुणस्तुति करी छे. तेना पछी जे थोडां संस्कृत विशेषणोउपमाओ आपी छे ते खूब सुन्दर छे.
- सौथी विशेष तो, शिष्यना हृदयमां गुरु प्रत्ये केवो बहुमानभाव छलकातो होय ते आमांनी गुणस्तवना द्वारा समजाय छे. पत्रमा लिखितंग तरीके मुख्य पं. श्री त्रिकमजीना शिष्य पं. श्री रवचंदजीना शिष्य श्रीचन्द्रजी छे पण साथोसाथ मुख्य साधु-साध्वी, श्रावक ने श्राविकाना नामोना उल्लेखथी समजाय के आ पत्र श्रीसंघ तरफथी ओक महापुरुषने लखायेलो राजनगरमां पधारवा माटेनो विनन्तिपत्र छे. अने तेनुं सर्जन श्रीचन्द्रजीए करेल छे.. .. आ विज्ञप्तिपत्र खम्भातना श्रीपायचंदगच्छ संघना भण्डारमा छे. उपाध्यायश्री भुवनचन्द्रजी महाराज द्वारा आ पत्नी जेरोक्स नकल मळी छे. ते परथी आ पत्र उतार्यो छे. त्यां "श्रीविवेकचन्द्रसूरि-विज्ञप्तिपत्र ले १८४६ राजनगर" एवी रीते तेनी प्रविष्टि जोवा मळे छे. विभाग बीजामां ११४/१४२ क्रमाङ्क हेठळ नोंधवामां आवेला आ पत्रनी लंबाई २१ फुट अने पहोळाई १० इंच जेटली छे.
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