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अनुसन्धान-६४
(२०) सिरोही-विजयलक्ष्मीसूरिजीने सुरतथी श्रीसङ्घनो पत्र (सचित्र)
- सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय ऋषभदेव, शीतलनाथ अने पार्श्वनाथ ए त्रणे इष्ट जिनेश्वरोने नमस्कार करवापूर्वक संस्कृत मङ्गलाचरण करी कविए उपकारी पांच जिनेश्वरोनुं गुर्जरभाषामां पत्रनी शरुआतमां स्मरण कर्यु छे । त्यार पछीनां पद्योमां कविए सिरोहीनगरनी वर्णना करता ते प्रांतना मुख्य तीर्थस्वरूप अर्बुदगिरिनी स्तवना करी छ । जो के आ स्तवनाना केटलांक पद्योना भावो अन्य पत्रमा मळता . सिद्धिगिरिनां पद्यो समान ज छे. सिरोहीमा बिराजमान विजयलक्ष्मीसूरिजीना १०८ गुणवैभवनं वर्णन करता पूर्वे कविए सिरोही नगरनुं तथा त्यांनां जिनमन्दिरोनुं सुन्दर वर्णन कर्यु छे. त्यार पछी "मारा घणु....' ए देशीमां कविए सूरिजीना आन्तरिक गुणोनुं वर्णन आलेख्युं छे. गूढार्थवाळां ७ पद्यो ए आ पत्रनी विशेषता कही शकाय. एवी ज रीते त्यार पछी पत्रमा आलेखायेखें सुरत शहेरनुं वर्णन ऐतिहासिक दृष्टिए घणुं महत्त्वनुं छे. सुरतना प्रसिद्ध अश्विनीकुमार, भीडभंजन महादेव, तापी नदी, तथा सूरजमंडणसाहिब, धर्मनाथ विगेरे प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध जिनालयो वळी नवापुरा, देसाईपोळ, उमरवाड, सइदपुरा, छापरीया जेवी घणी विगतोने कविए पत्रमा जे रीते वर्णवी छे ते परथी कविनी सूक्ष्म प्रज्ञा जणाई आवे छे. सुरतमां पं. मानविजयजी चातुर्मासार्थे पधार्या तेथी सङ्घमां केवी आराधना थई ते विगतनी पत्रमा 'दूहा' रूपे रचना करी पू. लक्ष्मीसूरि साथे बिराजमान साधुवृन्दने वन्दना जणावी पत्र रच्या संवत्नी नोंध साथे पत्र (पद्य) पूर्ण करे छे. सुरत चातुर्मासाथै बिराजमान मुनिवृन्दनी संख्या ते पण अहीं विशेष नोंधवा योग्य छे. गद्य पत्रनो प्रारम्भ १८ मुनिगुणनी वर्णनापूर्वक करी श्रीसङ्घना श्रावक, श्राविकाओनी वन्दना जणावे छे. सूरिभगवन्तना गुरु, जन्मस्थान, माता-पिता, वंश इत्यादि ऐतिहासिक सामग्री पूर्वक गुणस्तवनारूप भास, आलेखन करी खामणा लखी गद्य पत्र पूर्ण करे छे. अत्रे मूळ पत्रनी भाषा तथा जोडणी यथावत् जाळववामां आवी छे.
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