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अनुसन्धान-६४
घर घरे ओच्छव मांन मोच्छव करत रंग रसाल ए । नर नार सुंदर नवे नाटक पुजत पाप पखाल ए । भरि फेर ताल कंसाल मद्दल तंतुवेणी सार ए । ढमढमें ढोल नीसांण तबला सरणाई बहु ताल ए ॥३॥ अनमीय राज अबीट अगंजन आय तें सहु जेनमें । चतुरंग सेना सज जेता पेसतां मन ही गमें । ढींचाल उद्भट सुभट सोहे भीम जिम ते सोहता । सरपें लपेटा बांध फेंटा देखने मन मोहता ॥४॥ वली ईत नांही नीतिमारग लोक सब ते पालता । इण देस नांही दुक्ख दुरभिख शुद्ध पंथ सहु चालता । गणराज भरीयो ज्ञान दरीयो धर्म अर्थ साधे सह । . जिहां लोक सुखीया नांही दुखीया धनद जिम ही सेवहु ॥५॥ दुंदाल ने फूंदाल सोहै धर्म चरचा नर साधता । नरनार सुरता ध्यान धरता ज्ञान शुद्ध आराधता । जप जाप करता तत्त्व धरता ब्रह्मचर्य पाले सदा । षट्दर्श पोषे रहे जोषे दान मांने सह मुदा ॥६॥ केई रुद्र पूजे मल्ल झूझे करत क्रीडा अति घणी । बहुनार सखियां मिरग अंखियां अंक हरिजन भणी । मिल कंठ वाहे गीत गाहे रसिक इहविध चालता । करि चोट नेणां बोल वेणां रंग रली करि हालता ॥७॥ जिहां सुगुरु सानिध होइ नवनिध इत ठे नवि भीत है । महिमा विराजे साध छाजे धर्मनी बहु रीत ए। गुणवंत गुहरा लोक सोहरा सुजसरा भंडार ए । इम देख महिमा कही जेहमां सहेरनो आचार ए ॥८॥
नीसाणी हंसासण माता अक्षरदाता, तुझ सहु पाय नमंदा है । जिनचंदसूरिंदा जस मकरंदा, सहु देसां पसरंदा है । केसरदेनंदन सब जग वंदन कामरूप जीपंदा है । तुम गुण के आगर विद्यासागर कंचन काय दीपंदा है ॥१॥
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