Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसन्धान-५५
वान्तसर्वधातुजातविश्वजन्तुघातपात ! जिनप !, शान्त ! दान्त ! सिद्धिकान्त ! पूतनीलदेहकान्त ! भूनितान्तसुकृतशान्तिदस्त्वम्
॥९॥ नाराचकः ॥ जिनमखिलगुणाकरावतारं दलितसमस्तमदेन्द्रियार्थवारम् ।। प्रशमरसतरङ्गनेत्रतारं भजत भवाब्धिमग्नलोकतारम् ॥१०॥ कुसुमलता ॥ वज्री स्वर्गिषु मानवेषु च यथा चक्री च तेजस्विनां, मार्तण्डः कनकाचलो गिरिषु वा वृक्षेषु कल्पद्रुमः । गङ्गा सर्वनदीषु वा हिमरुचिस्तारासु मुख्यस्तथा, सद्ध्यानेषु तव स्वरूपसुलयो नेतो ! मया ध्यायते ॥११॥ काव्यम् ॥ सदरीबदरीचमरीभ्रमरीशबरीखचरीसुसुरीवनरीतिपुरीमधुरीकृतगीतगुणम् । अमरीकबरीचमरीकृतचीरसमीरगतं स(श)फरीलहरीनगरीमिव शीलय जीव ! जिनम् ॥१२॥ आलिङ्गनम् ॥ सुरनरसुखसम्पदामगारं विपुलमतिपतिरमोरुकण्ठहारम् ।। कमठहठकुष्टताकुठारं स्मर पुरुषोत्तममङ्गनाविकारम् ॥१३।। कुसुमलता ॥ हेमकुचकुम्भिनी विविधसुरमानिनी कुसुमवरदामिनी वदति गीतं, भुवनपतिकामिनी मरुजवरवादिनी नागसीमन्तिनी वहति तालम् । कलितकटिमेखला श्रवणवरकुण्डला नक्रमुक्ताफला सृजति नृत्यं, चन्द्रमण्डलमुखी हंसगतिगामिनी कापि लीलावती धरती तन्ती ॥१४॥ रचितकटिकिङ्किणी खचिततनुकञ्चुका तिलकमुखशोभिनी वाति तूरं, हारकेयूरके स्तनितपदनूप(पु)रा ललितसुललन्तिका काऽपि वीणाम् । अहिपपद्मावती ताण्डवं तन्वतीतीन ! ते किं मनो हरति नैव, रोचते तन्न किं मोदसे तेन नो वेति तर्कोऽस्ति नीराग आमे ॥१५॥
घटितगद्ययुग्मम् ॥ निविद्यागुरुविद्वते गुणवते निर्ग्रन्थताराजते. ध्येयानां महते सुखं विदधते सौभाग्यतः स्फूर्जते । शुक्लध्यानवते शमं च वहते योगस्य निद्रावते, निद्रायां स्फुरतीव योगिमनसो मे ते नमोऽर्हन् सते ॥१६॥ काव्यम् ॥

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158