Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 83
________________ मई २०११ (२) काव्यानुशासननो स्वाध्याय करतां... प्रा. रसिकलाल छो. परीखे कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यकृत काव्यानुशासन (-अलंकारचूडामणि अने विवेक - अ स्वोपज्ञ टीकाद्वय साथे ) नुं सरस सम्पादन कर्तुं छे. (प्र. - महावीर जैन विद्यालय मुंबइ, ई. स. १९३८) हमणां ते पुस्तक द्वारा काव्यानुशासन - अध्याय - १नुं अध्ययन करतां तेमां केटलीक क्षतिओ जोवा मळी; जेनी नोंध अभ्यासीने उपयोगी थशे ओम जणातां अत्रे आपवामां आवे छे : पंक्ति पृष्ठ ६ १६ २२ २३ ३७ ३८ ३९ ३९ ४३ ४५ ५२ १२ १९ ७ १९ १४ 2 2 2 2 m w v १८ ८ २१ २५ १७ ८ अशुद्ध एवं दृष्टो० ० विगलद्वारा ० ० दानवयुतै ० ० नदी यच्चे० ५ १६ १९ मृदुप्रिय० ० रुहिका वाताहर० रावणः क्व नु ०लादि द्रव्य० इति । वचनाद् तदनुगमेन ०पारोऽपह्नव० ०तमाहय० ० दन्धशय्या० शुद्ध एवंदृष्टो ० ० विगलद्धारा० ० दानवनुतै ० ० नदीवच्चे० मृदु प्रिय० ०रुहिकाः वाताहार० रावणः, क्व नु ● लादिद्रव्य० इति वचनाद् ५२ ५३ ०तमा हय० ५३ ०दन्ध! शय्या ५४ तेत्तियण तेत्तियेण ५५ ० भिधानेन विधि० ०भिधाने, न विधि० ५५ • तमोनिव • तमनिव ★ पुस्तकमां शुद्धिपत्रकमां दर्शावेलां स्थानो अत्रे नथी नोंध्या. तदननुगमेन ०पारोऽनपह्नव० ७७

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