Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मई २०११
१११
आ प्रमाणे विचारवामां तर्कजाळथी दूर रहीने वास्तविकता सुधी पहोंची शकाय छे ते पण ध्यानार्ह छे.
अन्ते, पूर्व महर्षिओ अने तेओनां वचनो प्रत्ये अपार आदरभाव होवा छतां अत्रे ओमनां वचनोनी जे विचारणा करी छे तेमां ओक ज समज मुख्य रही छे के सप्तभंगी हेतुवाद अन्तर्गत आवे छे अने हेतुवादमां चर्चानां द्वार हमेशां खुल्लां ज रहे छे. आ समग्र लखाण विचारणात्मक छे. आ आम ज होय, आम नहीं ज ओवो कोई आग्रह नथी. बनी शके के पूर्वमहर्षिओनां वचनोनुं अर्थघटन दर्शावेली रीत करता जुदी रीते करवा- होय. तेथी आ समग्र विचारणामां रहेली क्षतिओ जो विद्वज्जनो सूचवशे अने जे वातो योग्य जणाय ते परत्वे पोतानी सम्मति जणावशे तो तेओओ फक्त मारा पर ज नहीं, पण नयवादना सर्व जिज्ञासुओ पर उपकार को गणाशे.
सन्दर्भसूचि सन्मतितर्क - वादमहार्णव-टीका साथे- गाथा १.३०-४१, कर्ता- श्रीसिद्धसेन
दिवाकर, टीका- श्रीअभयदेवसूरि, सं.- पं. श्रीसुखलालजी, पं.
श्रीबेचरदास दोशी, प्र.- RENSEN Book Co., Tokyo. सन्मतितर्कविवेचन- पृ. २२२-२२३, कर्ता- पं. श्रीसुखलालजी, पं. श्रीबेचरदास
दोशी, प्र.- गूजरात विद्यापीठ, अमदावाद. अनेकान्तव्यवस्था (सटीक)-भाग-२ पृ. २४६-२५६, कर्ता- उपा. श्रीयशोविजयजी,
टीका- श्रीविजयलावण्यसूरिजी, प्र.- लावण्यसूरि ज्ञानमन्दिर, बोटाद. द्रव्यगुणपर्यायरास-सस्तबक - गाथा ४.१३, १४.१-९, कर्ता- उपा. श्रीयशो
विजयजी जैनतर्कभाषा (सटीक) - पृ. २२, कर्ता- उपा. श्रीयशोविजयजी, टीका- पं.
श्रीसुखलालजी, प्र.- सरस्वती पुस्तक भण्डार, अमदावाद. नयरहस्य - कर्ता- उपा. श्रीयशोविजयजी । सप्तभङ्गीप्रभा- कर्ता- श्रीविजयनेमिसूरिजी, सं.- कीर्तित्रयी, प्र.- जैनग्रन्थप्रकाशन
समिति, खंभात. सप्तभङ्गीविंशिका (सविवेचन) गाथा १५-१९, कर्ता- श्रीअभयशेखरसूरिजी,
प्र.- दिव्यदर्शन ट्रस्ट, धोळका.

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