Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 125
________________ मई २०११ चित्रकारो, चित्रकलाना इतिहासकारो, लिपिवेत्ताओ, लेखनकलाना माध्यममां रस धरावनाराओ वगेरेने पण खपमा लागी शके छे. आ बधाओनी जरूरियातो संतोषे ते रीते तैयार करवां जोइओ. अर्थात् हस्तप्रतना सूचिपत्रमां कोई हस्तप्रतमां चित्रो आपवामां आव्यां होय तो तेमां वापरवामां आवेला रंगो, चित्रनुं माप, चित्रनो विषय, चित्रकार, नाम, लिपिकलानी द्रष्टिले हस्तप्रत महत्त्वपूर्ण होय तो तेनी नोंध, अकथी वधु लहियाओ द्वारा लखवामां आवी होय तो तेनी विगतो, बांधणी वगेरे बाबतोनी नोंध करवी जोइओ२. ३. हस्तप्रत सूचिकरण अने सूचिपत्रोनो उद्भव अने विकास : भारतीय अने वैश्विक परिप्रेक्ष्यमां : सूचिपत्रोनो उद्भव तपासतां पूर्वे भारतमां लेखनकलानो विकास अने ग्रन्थालयोनी स्थापना क्यारथी शरु थई ते तरफ दृष्टिपात करवो जरूरी बनी रहे छे. भारतमा सिन्धु संस्कृति ई.स.पूर्वे ३२००-२८००ना समयगाळामां विकसी हशे तेम मानवामां आवे छे. आ समयगाळा दरम्यान लेखनकळानो विकास केटला अंशे थयो हशे ते अंगे आज सुधी खास आधारो प्राप्त थया नथी. चित्रात्मक लेखननी छापो के मुद्राओ प्राप्त थई छे, जे ४१७ जेटलां चिह्नो धरावे छे.४ आ लिपि पण उकेली शकाई नथी. बीजी बाजु ई.स.पूर्वे पांचमी शताब्दी अने त्यारबाद रचायेला विविध ग्रन्थो जेमके अष्टाध्यायी, कौटिल्य अर्थशास्त्र, ललितविस्तर, विनयपिटक वगेरेमा लेखनकला अने प्रचलित लिपिओ विशेना उल्लेखो जोवा मळे छे. भारतमा प्रवर्तमान समयमा प्राचीनतम ज्ञात लेखनकलानो नमूनो अटले अशोकना शिलालेखो (ई.स.पूर्वे २७३-२३२). जोके आ शिलालेखो पूर्वे भारतमा प्रचलित लेखनकलाना केटलाक अवशेषो प्राप्त थया छे, जेमके ई.स.पूर्वे ४८७-४८३नो पिप्रहवामांथी माटीना वासण उपरनो अभिलेख, ई.स.पूर्वे ४थी सदीनो ओरान सिक्को तथा सोहगौर (जि. गोरखपुर)- ताम्रपत्र. प्रो. घोषालकर शास्त्री वगेरे विद्वानो भारतमां लेखनकळानो उद्भव ईस.पूर्व ८मी शताब्दी माने छे. भारतमां लेखनकलानो विकास खूब मोडो थवा पाछळनां मुख्य कारणो पैकी मुखस्थ शिक्षण प्रणाली, धर्मग्रन्थोनुं लेखन न करवानी प्रथा वगेरे कारणो जवाबदार गणावी शकाय. ज्यारे इजिप्तनी संस्कृतिमां ई.स.पूर्व १८०० के ते पूर्वेना लेखनकळाना नमूनाओ प्राप्त छे.५

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