Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मई २०११
१४५
विहंगावलोकन
उपा. भुवनचन्द्र प्रचण्ड मेधा-मनीषाना स्वामी श्रीहेमचन्द्राचार्ये विद्याजगतमां पुष्कळ प्रदान तो कर्यु ज हतुं, एमणे केटलीक मौलिक शरुआतो पण करी हती : प्राकृत भाषाओने संस्कृत जेटलुं ज महत्त्व आप्यु, अपभ्रंश अने प्राचीन गुजरातीने प्रतिष्ठा आपी, गुजरात राष्ट्रना घडतरमां रस लीधो, पुरातत्त्वनी शोधखोळ अर्थे प्रथम उत्खनन माटेनी प्रेरणा आपी, सोमनाथना जीर्णोद्धारमां प्रेरक बन्या अने यात्रामां पण जोडाया, राजसभामां सर्व मत-पन्थना विद्वानो साथे बेठा अने चर्चा-विचारणामां भाग लीधो. आ बधुं तेमनी मौलिक चिन्तनशैली, संशोधक दृष्टि, ज्ञानपूत अभिगम अने प्रखर मेधा परिणाम हतुं. आ प्रज्ञापुरुषनी स्मृतिमां प्रकाशित थती 'अनुसंधान' संशोधन पत्रिका तेमनी आचार्यपद नवम शताब्दी प्रसंगे विशेषांक प्रगट करे ए तेना उद्देशने अनुरूप ज छे. विशेषांकने सुन्दर प्रतिसाद मळ्यो छे. सम्पादित कृतिओ तथा संशोधनलेखो सारा प्रमाणमां अने स्तरीय प्रकारना मळ्या छे. बे भागमा प्रकाशित थयेल आ विशेषांक सीमाचिह्नरूप बन्यो छे.
हेमचन्द्राचार्य अने तेमना साहित्य साथे सम्बन्ध धरावता १३ जेटला लेखो अने बीजा संशोधन लेखोमां प्रस्तुत थयेल माहिती-मूल्यांकनो विषे आ स्थळे अवलोकन करवान राख्यं नथी. सम्पादित कृतिओना अवलोकननो उपक्रम अहीं स्वीकार्यो छे. परन्तु आ अंकना संशोधनलेखो अने विशेषलेखोमांथी केटलाक विशे लखवानुं मन थई जाय एवं छे. सर्व प्रथम तो सम्पादकीय विशे. सम्पादक आचार्यश्री दरेक अंकमां संशोधनक्षेत्र विषे पोतार्नु चिन्तन मूकता होय छे, जे संशोधकदृष्टिने विकसाववा माटे अथवा तो ऊगता संशोधकोने भ्रामक ख्यालोमां अटवाता बचाववा माटे महत्त्वना विचारबिन्दुओथी छलकतुं होय छे. आ बंने भागमा सम्पादकश्रीए एवा ज थोडा मुद्दाओने अधोरेखित करी
आप्या छे. संशोधनक्षेत्रे रुचि धरावनार वर्गे आ लेखो ध्यानथी वांचवा जेवा होय छे.
हेमचन्द्राचार्य जेवी प्रतिभा तेजोद्वेष अने अपप्रचारनुं निशान बने ओ कदाच जगतनी वरवी वास्तविकता छे. ओ ज प्रमाणे, आवा व्यक्तित्वनी

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