Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
१५०
अनुसन्धान-५५
जोइए तेनी वात पण कडीमां गूंथी लीधी छे. “विद्यानो साचो हेतु 'तत्त्वपरिपदा' छे पण तेनो में अन्यने जीतवाना साधन तरीके - ढाल तरीके - कर्यो" - एवो आशय छे. आथी पदच्छेद आम थाय : विद्या तत्त्वपरिपदाजी.... 'परिपदा' शब्द उपाध्यायजीनी शैलीनी नीपज छे.
क. २२मां 'रत्नविलाप' छपायुं छे ते प्रेसभूल न होय तो वाचननी भूल छे. 'अरण्यविलाप'ना स्थाने 'रन्नविलाप' शब्द अहीं वपरायो छे. क. २६मां 'सूतजोगे'मां 'सूत' शब्दमां पण कशीक गरबड़ लागे छे. क. २७नी बीजी पंक्ति आ रीते वांचवी जोइए -
_ 'वृतमानभव रागता जी,तेणे त्रण्य भव नष्ट'. पाठमां संमार्जनीय स्थान - क. १. अभाय
अमाय २. पामयिजी पामियो जी ६. दृष्टि
दष्ट १४. हाय(व) हाय(दाव) १४. घूसियो जी धूसियो जी १५. दुखव्यो दूषव्यो शब्दकोश
चूंप (७) चोंप, काळजी परिपदा (११) निर्णय (?), बोध (?) धूसियो (१४) मेलो कर्यो, धूळथी खरड्यो रकोज्य (२०) ? मरोज्य (२०) ? सूत (२६) सूत्र (?), शिखामण (?)
'साध्वाचारषट्विंशिका' एक भाववाही, मधुर कृति छे. तेना रचयिता प्रौढ विद्वान तथा साधुताथी समृद्ध मुनिजन छे. आवा प्रकारनी रचनाओ संस्कृतना विद्यार्थी साधु-साध्वीओने पूरक वाचन तरीके आपवी जोइए.

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158