Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-५५
थाय छे. ते सिवाय तेमां कोई ज विकल्प सम्भवित न होवाथी, पूर्वार्धनो 'अर्थनयोने आश्रयीने थती विचारणामां सात विकल्पोवाळो वचनपथ रचाय छे' आ ओक ज अर्थ सम्भवे छे.
प्रश्न ओ रहे के कया अर्थनयने आश्रयी कयो भांगो सर्जाय ? टीकामां आनो खुलासो आम करवामां आव्यो छे : संग्रहनय तमाम स्थळे सत्ताअस्तित्व- ज दर्शन करे छे, माटे अस्तित्वनो प्रतिपादक प्रथम भांगो संग्रहनयने आश्रयीने रचाय छे. व्यवहारनय विशेषोनो ग्राहक छे अने कोई पण धर्मने विशेषथी- सूक्ष्मताथी जोवा जइओ तो आपेक्षिक नास्तित्व पकडाय. माटे बीजो भांगो व्यवहारनयने आधारे रचाय छे. त्रीजो अवक्तव्यभांगो ऋजुसूत्रने आभारी छे, कारण के सामान्य अने विशेष बन्नेनुं अकसाथे ग्रहण ऋजुसूत्रमा ज सम्भवे छे.१ आ त्रण भांगाना संयोजनात्मक अन्य चार भांगा पण मूळ भांगाना पोषक ते ते नयोना संयोजनथी सर्जाय छे. आम अर्थनयोने आश्रित अर्थगत धर्मोनी विचारणामां सप्तभंगी रचाती होवानुं निश्चित होवाथी आ गाथाना पूर्वार्धनो टीकामां ओक ज अर्थ देखाडवामां आव्यो छे : "एवं- पूर्वे देखाड्यो ते रीते सत्तविअप्पो- सात भांगावाळो वयणपहो- वचनमार्ग होइ- थाय छे अत्थपज्जाएअर्थनयोने आश्रित विचारणामां."
___ परन्तु, आ गाथानो उत्तरार्ध के जेने टीकाकार शब्दनयोने आश्रित विचारणापरक माने छे, तेना बे अर्थो तेओओ दर्शाव्या छे; जेमां पहेली वखते ओक अर्थमां वर्तती वाच्यता अने बीजी वखते ओक शब्दनिष्ठ वाचकताने केन्द्रमा राखवामां आवी छे. हवे, आपणे जो वाच्यताने लक्ष्यमां लइओ तो ओ पण आपेक्षिक धर्म होवाथी (जेमके घडो संस्कृत वगेरे भाषाओनी अपेक्षाओ घटपदवाच्य छे, पण अंग्रेजी वगेरे भाषाओनी अपेक्षाओ घडामां घटपदवाच्यता नथी) अमां पण उपरोक्त रीते सप्तभंगी रचावानी ज. पण टीकाकार भगवन्ते 'सविकल्प' अने 'निर्विकल्प' शब्दोने संगत करवा, शब्दनिरूपित वाच्यतामां, अनी आपेक्षिकताने अनुलक्षीने सप्तभंगी न घटावतां, बहु ज विशिष्ट रीते सप्तभंगी घटावी छे : साम्प्रतनयना मते घडो घट, कुम्भ, कलश व. घणा
१. त्रीजो भांगो ऋजुसूत्रथी ज केम रचाय ? तेना वधु खुलासा माटे जुओ अनेकान्तव्यवस्थागत
प्रस्तुत गाथार्नु विवरण. (पृ. २४७-२५०)

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