Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-५५
जरूरी छे; तेथी चोक्कस समूहोमां धर्मोने गोठववा, तेमांथी अेक समूहगत ओक ज धर्मनो अने कुल बे धर्मो-जेमां ओक स्वरुप होय अने अेक पररूप-नो उल्लेख प्रश्नमां जरूरी मानवो वगेरे व्यर्थ कल्पना ज छे.
उपर दर्शावेली रीते जोइओ तो वाच्यतामां पण त्रीजो भांगो घटे ज छे. जेमके घडो घटपदवाच्य त्यारे ज बने छे के ज्यारे अने 'घट' पदथी ओळखवो अq नक्की कर्यु होय,' ओ सिवाय नहीं, माटे ज अंग्रेजी भाषानी अपेक्षाओ घडो घटपदवाच्य नथी. तो जे अपेक्षाओ घडामां घटपदवाच्यता छे अने जे अपेक्षाओ नथी, ते बन्ने अपेक्षाओ अकसाथे जोइओ तो आ वाच्यताने आश्रित अवक्तव्यता आववानी ज, अने तत्प्रतिपादक त्रीजो भांगो मळवानो ज. ढूंकमां, शब्दनिरूपितवाच्यताने जो धर्म तरीके लइने विचारीओ तो अमां सप्तभंगी ज रचाय छे. माटे ओ रीते व्यंजनपर्यायमां बे ज भांगा घटाववा सम्भवित नथी.
२. अज्ञानादि दूर करवा ओ ज सप्तभंगीनुं प्रयोजन छे. तेनी प्ररूपणामां 'चोरस अने काळा घडानी जरूर पडवी' अवा व्यावहारिक प्रयोजनोनी अपेक्षा ज नथी होती. वास्तवमां सप्तभंगीना प्रणयनमां आवां व्यावहारिक प्रयोजनोनी अपेक्षा राखवामां 'सप्तभंगी, क्रमशः आ ज रीते निरूपण थाय, अने निरूपण साते सात भांगानुं थाय' आवा केटलाक नियमो ज नथी सचवाता. कारण के व्यवहारमा तो जेवा घडानी जरूर पडी तेवा घडा माटे पूछ्युं अने जेवो घडो हतो तेवो जवाब आपी दीधो अटले वात पूरी थइ जाय छे. सप्तभंगी- खरेखर प्रयोजन जो वास्तविक बोध गणीओ तो ज आ बधी प्ररूपणा करवानी रहे छे. माटे, व्यावहारिक प्रयोजनना अभावे वाच्यतामां त्रीजा भंगनो अभाव घटाववो बिल्कुल वाजबी नथी.
३. 'घटपदवाच्योऽस्ति न वा ?' जेवा प्रश्नोने वाच्यताविषयक गणी ज केवी रीते शकाय? कारण के अमां घटपदवाच्य धर्मीमां अस्तित्वनी शंका छे. वाच्यताने संशयनो विषय बनावतो प्रश्न तो आम निरूपाय : 'अयं घटपदवाच्यो न वा ?' अने आ प्रश्नने अनुलक्षीने सप्तभंगी पण आम रचायः 'स्यादयं घटपदवाच्य एव, स्यादयं घटपदावाच्य एव, स्यादयमवक्तव्य एव...' १. वधु साची रीते कहेवू होय तो अम कहेवाय के घडामां घटपदनो संकेतग्रह को होय.

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