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मई २०११
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सप्तभंगीप्रभा जेवा अनेक-अनेक ग्रन्थोमां बहु ज सूक्ष्मताथी निरूपायुं छे. पण आ ग्रन्थो जाणे दुनियामां छे ज नहीं ले रीते सप्तभंगीविंशिकामां सप्तभंगीनुं निरूपण थयुं छे. आ निरूपण अवश्य परीक्षणीय छे, पण विस्तारना भयथी अत्रे ते न करतां फक्त अवक्तव्यभंगना अभावनां जे त्रण कारणो दर्शाव्यां छे तेनी ज विचारणा करीशुं.
११. सप्तभंगीना प्रणयन माटे दरेक वखते प्रश्न जरूरी नथी होता. कारण के प्रश्न संशय होय तो ज संभवे छे, ज्यारे सप्तभंगी तो संशयनी जेम अज्ञान अने विपर्ययना निरास माटे पण रचाय छे.२ माटे प्रश्न न संभववा मात्रथी त्रीजा भंगनो अभाव मानवो शक्य नथी.
तो पण धारो के मानी लइ के प्रश्न संभवे तो ज तेना जवाबरूप भांगो संभवे. तो पण ओ रीते तो घटपदवाच्यता जेवा धर्मोमां त्रीजा भांगानो अभाव नथी ज घटवानो. कारण के अवक्तव्यभांगा माटे संभवती जिज्ञासाथी जन्य प्रश्नमां बे विकल्पोनो उल्लेख होतो ज नथी; परन्तु अेक धर्मीगत ओक धर्मना अस्तित्व अने नास्तित्व बन्नेनी पोषक ओक ओक अपेक्षानो उल्लेख होय छे. जेमके, कोई व्यक्तिविशेषने उद्देशीने अर्बु कथन करवामां आवे के 'ते आ जन्मनी अपेक्षाओ मनुष्य छे, पण गया जन्मनी अपेक्षाओ अमनुष्य (-देवादि) छे.' तो प्रश्न थशे के बन्ने जन्मनी अकसाथे अपेक्षा राखीओ तो ते मनुष्य गणाय के न गणाय ? आमां जोइ शकाशे के धर्मी- व्यक्ति ओक ज छे, संशयनो विषयभूत धर्म- मनुष्यत्व पण अक ज छे, फक्त अपेक्षा ज बे छेआ जन्म अने गयो जन्म. हवे, आ जन्मनी अपेक्षाओ ते मनुष्य पण छे अने गया जन्मनी अपेक्षाओ अमनुष्य पण छे, तेथी बन्ने जन्मनी अपेक्षाओ ते व्यक्ति जे छे तेने जणावनार कोई शब्द न होवाथी अवक्तव्य ज कहेवू पडे. अने ते ज त्रीजो भांगो छे. आमां जोइ शकाशे के त्रीजा भांगा माटे प्रश्नमा मात्र धर्मना अस्तित्व अने नास्तित्व बनेने सम्बन्धित अलग-अलग अपेक्षाओनो उल्लेख १. पृष्ठ १००-१०१ परनां कारणोनो आ क्रमांक छे. २. किञ्च वाक्यस्य परार्थाधिगमफलकत्वेन यथा परस्य संशयनिवृत्त्यर्थं प्रयोक्तव्यत्वं तथा परस्या
ऽज्ञाननिवृत्त्यर्थमपि... तत्र वादिनां विप्रतिपत्तयोऽपि सप्त, तन्निवर्त्तकवाक्यान्यपि सप्तेत्येवंरीत्याऽपि सप्तभङ्गी सूपपादा - सप्तभङ्गीप्रभा-पृ. ६