Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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६०
अनुसन्धान-५५
तो सिद्धार्थ महाराजाने आंगणे निमन्त्रण अने साथै प्रभुनुं नामकरण, पछी शुं बाकी रहे ? अने अहीं कदाच कोईने कविनी, वातमां अतिशयोक्ति लागे ने मात्र कविकल्लोल गणीने वातने हसी न काढे ते माटे कवि स्वयं एक खुलासो आपे छे के, ‘जे ए सर्व प्रभुने पुण्ये थाए... इंद्र प्रभुनी भक्ति करे तिहां किम न होईं ?' जो के, उपर पण भोजनबाद पहेरामणीनुं वर्णन छे त्यां पण कविओ 'पूर्वे वृष्टि थइ छे ते' ओम जणावीने आ वातनी पुष्टि करी छे.
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छेल्ले आ कृतिनी रचना ते वखते श्री ट्राफा (?) शहेरमां बिराजेला पं. नेणचंद्रजीओ सं. १८४० नी भादरवा सुद चतुर्दशीना रोज करी छे ए वातनो उल्लेख छे. पं. नेणचंद्रजी अंगे कोई विशेष जाणकारी नथी. तेमज 'द्राफा' एटले कयुं नगर ? ते पण समजायुं नथी.
आखी 'भोजनविधि' पूर्ण थया बाद 'वस्त्रनामानि' लेख छे.
अलग नानो
सिद्धार्थकृत भोजनविधि
हवे इहां राजा सिद्धार्थ जे ते; पुत्रनुं श्रीवर्धमानकुमर एहवं गुणनि:प्पन नाम देवा निमित्ते स्वजन वर्गने जिमाडे, तेह भणी भोजनविधि लिख्यते ॥
विउलं असणपाणमिति सकलज्ञाति-क्षत्रियाणां भोजनपूर्वसत्कार:मांड्यो उत्तंग तोरण मांडणो, तुरत नवो वेसिवाने आंगणो । ते तो नीलरतनतणो, तेहने वखाणीइं सुं घणो ॥
तेहमां भला चंद्रूआ बंधाया, पछे कुंकुमना छडा देवाया । मोतीतणा चोक पूराया, तेमाहिं वारुं पाट पथराया ॥ तिहां सखरा मांड्या आसण, जिहां बेसतां किसी विमासण । आगे मूकी सोवन आडणी, ते तो किम जाए छांडणी ॥ उपरि मूक्या सोवनथाल, ते तो सोहे घणुं विसाल । विचमे आली चोसठि वाटकी, लिगार नही जाति काटकी ॥ पछे गंगोदक दीधां, थाल कचोला ने हाथ पवित्र कीधां । तिहां सघली पांति बेठी दृष्टि करीने हेठी । तेहवे प्रीसणहारी पेठी, ते सहुने मनि बेठी ।

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