Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ जुलाई-२००७ १३ तवियम(त?)वणिज्जगोरो कुमार-वासम्मि वास-लक्खाई। पनरस रज्जम्मि य दुगुणियाई गमिऊण छटेणं ॥३॥ माह-सिय सहस्संबे माह-सिय-चउत्थि गहियसामन्नो । नर-सहसजुओ जय-पायसं च पत्तोसि बीयदिणे ॥४॥ वास-दुगंते फुरिया नाणसिरी पोस-सुद्ध-छट्ठीए । तम्मि वणे गणहारी सत्तावन्ना तए विहिया ।।५।। अडसट्ठी मुणि सहसा अज्जाउ लक्ख-मट्ठसयसहियं । तुह देव ! सेवगा पुण छम्मुह विइया सयंभु हरी ॥६।। पन्नरस वासलक्खा तुब्भ वयं सट्ठिमेव सव्वाऊ । तीसाइ सागरेहिं गएहि जिण वासुपुज्जाओ ।।७।। आसाढ-कसिण-सत्तमि समत्तनीसेसकम्मनिम्महण । छहिं मुणिसहसेहिं समं सम्मेए निव्वुय नमो ते ॥८॥ सिरि अणंतणाह-थुत्तं जिणनाह ! अणंतमणंतराउ भवियाण मोहमवणेउं । कसिणाए सावण-सत्तमीइ तं पाणयाउ चुओ ॥१॥ जाओसि अउज्झाए सेणंको सीहसेण-सुजसाण । वइसाह-तेरसीए कसिणाइ सुवनवन्न तुमं ॥२।। पन्नासधणुसरीरो वासाणऽद्धट्ठमा सय-सहस्सा । कुमरो निवो य दुगुणा मणुय-सहस्सेण सहसंबे ॥३॥ कयछट्ठो कसिणाए वइसाह-चउद्दसीइ गहियवओ । विजयाओ परमन्नं अन्नंमि दिणंमि पत्तोसि ॥४॥ वासतिगंते संजम-तिहीइ पत्तं तहिं वणे नाणं । तुह गणहर पन्नासा कमेण मुणि साहुणी सहसा ॥५।। छावट्ठी छावट्ठी भत्ता पायाल-अंकुसाउ तहा । पुरिसुत्तमो हरी वयमद्धट्ठमवासलक्खाइं ।।६।। वासाण तीस लक्खा सव्वाउं विमलजिणवरिंदाओ । सागरनवगम्मि गए सह सत्तहिं मुणिसहस्सेहिं ।।७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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