Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 42
________________ जुलाई - २००७ वाचक ज्ञानप्रमोद के शिष्य विशालकीर्ति व्याकरण के प्रौढ़ विद्वान् थे । इनका विरुद सरस्वती था और ईडर की राज्य सभा में इन्होंने जय प्राप्त की थी। इनकी प्रक्रिया कौमुदी टीका और सारस्वत व्याकरण टीका प्राप्त है । कोट्टदुर्गमण्डन आदिनाथ-स्तोत्रम् विश्वप्रभुं प्रणतनाकिकिरीटरत्नघृष्टांह्निपीठमसुमत्सु कृपाप्रयत्नम् । चेतस्समीहितसुरद्रुमतार्घ्यसेवं, भक्त्या स्तवीमि सुतरां जिनमादिदेवम् ॥ १॥ श्रीनाभिभूपकुलपुष्करपद्मिनीपं, लोकत्रयीसकलभावविभासदीपम् । तत्त्वाप्तये भजत भव्यजनाः ! कृतार्थं, प्रोद्यच्छरच्छशिमुखं च युगादिनाथम् ॥२॥ प्रह्वाङ्गिसङ्गकरुणोपकृतौ गरिष्ठः, प्रोद्दामकामकरितुङ्गमृगारिरिष्टः । सत्कोमलक्रमणसंवृतवामपद्मः, पायात् स वः प्रथमतीर्थकरोऽर्थसद्मः || ३॥ Jain Education International स्फूर्जद्धरिप्रभृतिदेवविलक्षणोरुनानाचरित्रसुचमत्कृतविष्टपोरुम् । भक्ताङ्गिनिर्मितमनोज्ञकुनाभिजात:, स श्रीप्रदोऽस्तु भविनां किल दत्तसातः ||४|| आनम्रदानवसुरेश्वरचञ्चरीक श्रेण्या निषेवितमनारतमस्तपङ्क ! | पद्माश्रयं भविनृणां ननु मानसं ते पादाम्बुजं समभिनन्दतु पूतकान्ते ! ॥५॥ For Private & Personal Use Only ३५ www.jainelibrary.org

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