Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ अनुसन्धान-४० तहां पंचमुष्टी लोच कीओ प्रथम सिद्ध नती करी मंडिय महाव्रत पंच दुद्धरस सकल परिग्रह परिहरी ॥६॥ मणिमय भाजन केस परीच्छय सुरपति खीर समुद्र-जल खिपि करी गए अमरावती । तप संयमबल प्रभुकुं मनपरजय भयो मौन सहित तप खप करिने लाल कछु तिहां गयो ||७|| गयो तिहां कछु काल तप बल रिद्ध वसु गुण सिद्ध ए जसु धर्मध्यान बलेन खय गए सप्त प्रकृति प्रसिद्ध ए । खपि सातमे गुण जतन बिनु तिहां तीन प्रकृतियौ बुधि बढ्यौ करि करण तीन प्रथम सकल बल क्षपक श्रेणे बल चढ्यौ ॥८॥ प्रकृति छत्रीस नवमे गुणठाणे विनासए दशमे सूच्छिम लोभ प्रकृति तिहां आसए । शुकलध्यान पद दूजे फुनि प्रभु पूरीओ बारसमे गुणे सोल प्रकृति तिहां चूरीओ ॥९॥ चूरीओ सठि प्रकृति एह बिधि घातीया करमह तणी तप कीयो ध्यान परवान बारे विधि त्रिलोक शिरोमणी । निष्क्रमण-कल्याणक सुमहिमा सुनत सब सुख पाईए त्रैलोक्यनाथ सुदेव जिनवर जगतमंगल गाईए ॥१०॥ इति श्री तृतीय कल्याणक ॥ ।। तेरसमे गुणठाणे सयोगि जिनेश्वरू अनंतचतुष्टय मंडित भयो परमेश्वरु । समवसरण तव धनपति बहुबिधि निरमयो आगमजुगति प्रमाण गगनतलि परिठयौ ॥१॥ परिठयौ चित्र विचित्र मणिमय सभामंडप सोहए तिहां मध्य बारे बिने कोठे बनक सुरनर मोहए । मुनि कलपवासिनि आर्यिका तिहां युतिक भौम भुवनत्रिया फुनि भौम भौमि सकल पसु नर पसु त्रिकोट ए बेठिया ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96