Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-४०
आन्यौ सुची जिनरूप देखत नयन नृपति न पूजए तव परम हरषित हृदय हरनां सहस लोचन हू जए । तिहं करहि प्रनाम जु प्रथम इंद्र उत्संग धरि प्रभु लीनीओ सौधर्म अरु ईशान इंद्र जु छत्र प्रभु शिर दीनीओ ||६|| सनतकुमार माहिंद चमर दोइ ढार हैं शेष शक्र जयजयरव शब्द उच्चारहै । उत्सव सहित चतुरबिध सुर हरखित भए जोजन सहस निन्यायूं सुर उल्लंघए ॥७॥ गए सुरगिरि जहां पांडुकबन बिचित्र बिराजए पांडुकसिला तिहां अर्धचंद्र समान रवि छबि छाजए । जोजन पंचास बिसाल दुगुणायाम वसु ऊँची गने वर अष्टमंगल कनक कलस तिहां सिंहपीठ सुहावने ॥८॥ रचि मंडप सोभित मध्य सिंहासनं थाप्यो पूरवमुख तिहां प्रभु कमलासनं । वाजत ताल मृदंग वयन घोषना थते दुंदुभि प्रमुख मधुर धुनि और जूं बाजते ।।९।। बाजहिं निबाजहि सुचिय सच(ब?)मिली धवलमंगल गावहीं तहां करहिं नृत्य सुरंगना सब देव कौतुक आवहीं । वर खीर सागर जल जु निरमल हाथ सुरगन लावहीं सौधर्म अरु ईशान इंद्रसु कलस लेइ प्रभु नावहीं ॥१०॥ बदन उदर अवगाह कलसगत जानीइं एक च्यार वसु जोजनमान प्रमानीइं । सहस अट्ठोत्तर कलस प्रभूजीके शिरें दुरे फुनि शृंगार प्रमुख आचार सवें करें ॥११।। करै प्रगट प्रभु महिमा महोत्सव आनि फुनि मातहि दयौ धनपतिहिं सेवा राखि सुरपति आप सुरलोकें गयौ ।
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