Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 82
________________ जुलाई-२००७ ७५ जननेन्द्रिय 'फूल' है । श्वासोच्छ्वास का इन्द्रिय 'पत्ता' है । उत्सर्जन क्रिया हर वनस्पति में परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग होती है । वह पत्ते, तना और मूल सभी अवयवों के द्वारा होती है । जो-जो भी इन्द्रिय संवेदनायें वनस्पति में पायी जाती हैं, उनके पीछे विचारशक्ति, मन अथवा मज्जासंस्था नहीं होती । वनस्पति जो-जो संवेदनात्मक प्रतिक्रियायें देती हैं वे सिर्फ रासायनिक या संप्रेरकात्मक प्रक्रियायें हैं । मनुष्य में ऐच्छिक क्रियायें और प्रतिक्षिप्त क्रियायें दोनों होती हैं । ऐच्छिक क्रियाओं के लिए विचारशक्ति की आवश्यकता नहीं होती है । जैसे कि किसी भी आगात से पलकों का झपकना । इस क्रिया के पीछे कोई भी विचारशक्ति नहीं है, उसी प्रकार छुईमूई (mimosa pudica) आदि वनस्पतियों में इस प्रकार की क्रियायें प्रतिक्षिप्त क्रियायें हैं। __व्याख्याप्राप्ति में कहा है कि वनस्पतिजीव को समयादि का ज्ञान नहीं होता ।३५ आपाततः तो लगता है कि यह संकल्पना गलत है क्योंकि सूरजमुखी का सूरत की तरफ झुकना, रजनीगन्धा का रात में फूलना, दिन में या रात में कमलों का विकसित होना, विशिष्ट ऋतु में वनस्पति में फलोंफलों की बहार आना आदि घटनायें देखकर ऐसा लगता है कि समय के अनुसार वनस्पति प्रतिक्रियायें देती रहती है । लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से ये सिर्फ रासायनिक संप्रेरकात्मक घटनायें हैं। इसमें जानबझकर करने की कोई बात नहीं उठती । इसीलिए एक प्रकार से कहा भी जा सकता है कि उनमें समय का ज्ञान नहीं है । समयानुसारी वर्तन तो उनमें मौजूद है पर वह ज्ञानपूर्वक नहीं है। वैदिक साहित्य में काव्य, नाटक आदि में वनस्पति ऋतु के अनुसार पुष्पति-फलित होना, कमलों के विविध प्रकार आदि के उल्लेख विपुल मात्रा में पाये जाते हैं । लेकिन दार्शनिक ग्रन्थों में इसका विचार स्वतन्त्र रूप से नहीं किया है। वनस्पति का आहार में प्रयोग - जैन प्राकृत ग्रन्थों में वनस्पति द्वारा किया जानेवाला आहार तथा ३५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ५.९.१०-१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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