Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 49
________________ ४२ विध्यें आवि बेंसो बाल, शोवनमें मांडी थाल, भणें मरुदेवी वछ छांडो नें आल ॥२८॥ इंद्र आदि देव बहु, जेहनां गुण गायें सहु, रुचें ते भाइ कहो भोयन करुं ॥ २९ ॥ खाजा बोजां वारी पुरी, घुघर फणस भेल [ करी], वरसोलां घेवरमांहिं साकर चुरी ||३०|| ज्यलेबी हे (द ? ) शमी शार, ताकची मांडी कंशार, दुधपाक कोलापाक कर्यो अ विचार ||३१|| दहेंथरां फाफडा भेलि, सेवमां सुहालि मलि, फेंणीमांहिं मरकी मलि खांडस्युं रलि ||३२|| घारी दलिया नें घुकरीया, मोतीया लाडुआ कसमसिया, चुरमा नें मगर (मग) ना लाडु परीसु सेवइया ||३३|| मांडा पुडा वडां पोलि, वेढमी बे चांपि तलि, खिर खांड घीयस्युं ठोठडी गलि ||३४|| पकवांन आदें गहुअतणां, लापशीमां घीय घणां, दुध ने खांड मेंथीसुं ( में घीसुं) भाणुंअ भरी ||३५|| कमोदि शालिनो कुर, स्यंघत साठी पडी चुर, देवतास्य इंद्र आदें पुरखे सुर || ३६ || तुवर्य मगानि दालि, मसुर चोलानि दालि, खीचडो खीचरी रोटि, ढुढण कोदरा बरटी, अनुसन्धान- ४० पापड पापडी वडी, राइतुं मरीनुं करी, घीअ घणुं बांधोनें पुतर पालि ||३७|| Jain Education International सुंदरणुं कणीआलुं ढोकलि मेंठी ||३८|| चीडां काचां नें पाकां, त्रुंशडी डांगर नीकां, कचुंबर आदि पट कोठनी वडी ||३९|| टेडु फुट चिभडां, आलुआं ने टेंडशरां, खडबुजां वनोलां सीलां मरीतां पाकां ||४०|| नीलुआ चणा रे मणा, नीला वलि नथि मणा, वग्घारीने वाश देस्युं प्रीसुजी घणां ॥ ४१ ॥ चुलानी वालोलि काचां केलां ते घणां ॥४२॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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