Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 52
________________ जुलाई-२००७ मळतो नथी; दि. साहित्यमां तपासतां मळवानो पूरो सम्भव. प्रतिनो ले.सं. १८६८ छे, तेथी ते पूर्वे तेओ थया ते तो स्पष्ट छे. प्रतिना लेखक 'गणि सरूपचंद' छे, तेमणे 'नेमसागर' माटे लखेल छे; आ बन्ने श्वे. आम्नायना मुनिओ होय तेम 'गणि' शब्द द्वारा सूचित थाय छे. आ रचनानी भाषा व्रजमिश्रित खडी हिन्दी जणाय छे. रचना श्रवणमधुर, प्रासादिक तथा भक्तिप्रचुर छे. त्रोटक अने हरिगीत ए बे छन्दोमां समग्र कृति रचाई छे. कल ४८ कडी छे. तोटकमय प्रत्येक कडीनो अन्त्य शब्द, हरिगीतनो आद्यशब्द किंवा उपाड बने छे, ते कविनी काव्यकुशलता प्रत्ये संकेत करनारुं छे. आम तो समग्र प्रतिपादन दिगम्बर मान्यता अनुसारी ज छे. परन्तु जे केटलीक प्राचीन दिगम्बर मान्यताओने ते मतना ज अर्वाचीनो उवेखे छे के ठुकरावे छे, तेमांनी एक प्राचीन दि. मान्यता आ रचनामां पण उल्लिखित जोवा मळे छे. चोथी ढालनी पांचमी कडीमां "सकल अरधमागधीय भाषा जानीइं." आमां जिन अर्धमागधी भाषामा देशना (उपदेश) आपता होवानी वात सूचवाई छे. पण पाछळना दि. मत अनुसार "जिन भाषा बोलता नथी, अने फक्त 'दिव्य ध्वनि' ज तेमना कंठथी प्रगटे छे. तेमज अर्धमागधी भाषा तो साव अर्वाचीन छे." आ बन्ने मान्यता केटली अर्वाचीन छे, तथा ते ज कारणे ते केटली अनुचित के अग्राह्य छे, तेनो खुलासो, एक दि. कविनी ज आ पंक्ति आपी देती जणाय. छे. रचनानी पांच पानांनी हस्तप्रतिनी नकल कच्छ-नवावासना भण्डारमाथी उ. श्रीभुवनचन्द्र म.ना औदार्यथी सांपडी छे, ते नोंधवं जरूरी छे. तो साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्रीजीए आ प्रति परथी सुवाच्य प्रतिलिपि लखी आपी छे, ते पण नोंधq घटे. ॥ अथ दिगंबरमतानुसारी पंचकल्याणकानि कविश्री रूपचंद्रजी कृतानि लिख्यते । पणमवि पंच परमगुरु गुरुजन शासनं सकल सिद्धिदातार हि विघन विनाशनं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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