Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 28
________________ जुलाई - २००७ श्रीनरेन्द्रप्रभसूरि विरचित सूक्तमाला अमृत पटेल कवि श्री नरेन्द्रप्रभसूरि- मलधारीओ 'विवेककलिका अने विवेकपादप नामना बे सूक्तिसंग्रहो-सूक्तसमुच्चयनी रचना करी छे. तथा अलंकार विषयक 'अलङ्कारमहोदधि' ओमनी ज प्रसिद्ध कृति छे. तथा अप्राप्य 'काकुत्स्थकेलि' पण एमनी कृति कहेवाय छे. प्रस्तुत सूक्तमाला पण एमनी कृति होवानी शक्यता छे. १२१ श्लोकैनी प्रस्तुत कृति अपूर्ण जणाय छे. श्लोकना पूर्वार्धमां उपदेश के नीतिविषयक सूक्तिओ छे अने उत्तरार्धमां व्यवहारिक डहापण, निमित्त, ज्योतिष वगेरेनी प्रचलित विगतोनी पुष्टि, मोटे भागे दृष्टान्त के अर्थान्तरन्यास अलंकार द्वारा अपाई छे. भाषा प्रसादगुणने कारणे आस्वाद्य छे, अने अनुप्रास पण हृद्य छे. जुओ - 'राहुराहूयते केन विधोर्वैधुर्यहेतवे ॥ ९ ॥ के ‘मन्दाकिनीमृदो वन्द्यास्त्रवेदीवेदिनामपि ||१७|| आम तो समग्रकृति ज समग्र पणे लयसौन्दर्यनो अखूट खजानो छे. २१ ― आ सूक्तमालानुं संशोधन बे हस्तप्रत उपरथी थयुं छे. बन्ने प्रतो लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादनां हस्तप्रतभण्डारमां छे. Jain Education International A ला. द. भे. सू १९८८२, पञ्चपाठ, २६ x ११ से.मी. नी साईझमां ६ पत्रो छें. बन्ने हांसियामां लालशाहीथी ऊभी लीटी करेल छे. पत्र मध्यभागे हरताल - चन्द्रक छे. आ प्रतमां १२१ पद्यो छे. A - ला. द. भे. सू. २६५६५, नंबरनी छे. तेमां २५.५ x ११.३ से.मी. साईझनां ५ पत्रो छे. तेनां लिपिकार मुक्तिसौभाग्यगणि छे. आ प्रतमां १११ पद्यो छे. A प्रत उपर दृष्टान्तशतक अवचूरि अवुं नाम लखे छे. अने कर्ता तरीके 'मल० 'नरेन्द्रप्रभसूरि' नो उल्लेख छे. ( B प्रतमां आवो कोई उल्लेख नथी). माटे में कृतिकार तरीके नरेन्द्रप्रभसूरिने मान्या छे. छतां कृति अपूर्ण छे. जेने कारणे ग्रन्थकार विषे निर्णय करवो अघरो छे. माटे ज विवेकपादप, विवेककलिका तथा अलङ्कारमहोदधिनां उदाहरणो साथै प्रस्तुत कृति 'सूक्तमाला'नुं कृतिसत्त्व For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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