Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 23
________________ १ / अनुसन्धान-४० सिरि नमिणाह-थुत्तं नमिनाह ! नमामि तुमं कयत्थमप्पाणयं विहेउमणो। तं पाणयाओ मिहिलं आसोए पुनिमाइ गओ ॥१॥ जाओसि विजय-वप्पाण सावण-कसिण-अट्ठमीइ तुमं । पन्नरसधणूसिय उप्पलंक तवणिज्जरमणिज्ज ॥२॥ अड्डाइज्जा कुमरो वास-सहसा य पंचनरनाहो । होउं सहसंबवणे नर-सहसेणं विहियछट्ठो ॥३।। आसाढकसिण-नवमीइ निग्गओ परदिणम्मि पत्तोसि । परमन्नं दिनाओ अह नवमासेहिं तम्मि वणे ॥४॥ मग्गसिरसि इक्कारसि हयनाणावरण गणहरा जाया । सत्तदस साहु-साहुणिसहसा वीसेगचत्ता य ॥५॥ भिउडी गंधारी वि य भत्ता हरिसेण चक्कवट्टी य । तुह वयमड्ढाइज्जा वाससहस्सा दसाउं च ॥६।। छसु वच्छरलक्खेसु गएसु मुणिसुव्वयाउ सम्मेए । ' वइसाह-कसिण-दसमीइ सह सहस्सेण साहूणं ॥७॥ सम्मत्ताइगुणेहिं लद्धं तित्थयरनाममइदुलहं । मुत्तूण तंपि पत्तोसि मुक्खसोक्खं नमो तुज्झ ॥८॥ सिरि णेमिणाह-थुत्तं सिरिनेमिणाह ! मोहेण भुवणमवराइयं तुमं काउं । बहुलाए कत्तिय-बारसीइ अवराइयाउ भुओ ॥१॥ जाओसि सिवादेवी-समुद्दविजयाण सोरियपुरम्मि । सामंग दसधणूसिय सावण-सिय-पंचमीइ तुमं ॥२॥ संखंक कुमारोच्चिय कुमरत्ते गमिय तिन्नि वाससए । सावण-सिय-छट्ठीए छटेणुज्जितगिरिसिहरे ।।३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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