Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ [7] अहवा पिआगहाई पहाणपुरिसा व जं जहाजोग्गं । जाणंति तं ठवंति य दुण्ण वि एगो व पट्टध ॥५६ तम्हा हु उसभपहुणो सयसंखा आसि निवइणो पुत्ता । इक्किक्कस्स य तत्तो, सहस्ससो निवइणो ते वि ॥५७॥ जा कोडिलख्खसंखा, पिहु पिहु आसीय सुबहु वित्थारं । संते पियरंमि निवा, तहेव लोअंमि रघुवंसे ॥५८॥ एवं पिया पियामहमाइय सत्ताइ निवइणो आसि । तेणें चि सो वंसो वित्थरिओ सुट्ठ सयसाहं ॥ ५९॥ जइ जणगो एगं चिअ ठवेइ अण्णं तु तंमि अवसंते । तं चेव गणइ पट्टे इग तय हीणा व परिवाडी ॥६०॥ पियरंमि असंते वा पुत्त पुत्तं ठवेइ रज्जमि । णय वा बंधवपुत्तं पहाणपुरिसो वणो ठवइ ॥ ६१ ॥ ता उसभसामिवंसे जा वुड्ढी वण्णियासु बहुसत्थे । सा ण हु जुज्जइ जुज्जइ जइ ता तेहिं अणीइकया ॥६२॥ एवं च पुंडरीअप्पमुहाण वि गणहराण वंसंमि । विणयं सयसाहं तित्थं वित्थारमावण्णं ॥६३॥ तह वद्धमाणजिणवरतित्थं वडपायवुव्व एवं पि । वुट्टे (?) परमं पत्तं तं जुज्जइ णण्णहा कहवि ||६४|| तत्थ वि इगस्स गुरुणो, बहवे वि भवंति सूरिणो सीसा । केसिंचिअ पुण तेसिं णियणियणामेण गणमाइ ॥६५॥ जस्स गणो सो णियमा गणहारी कयगणणुण्णत्तणेण गणहारी । सो वि ठवेइ नियपए स गुरुंमि विरायमाणं मि ॥ ६६ ॥ ठविऊणं कयकिच्चो सो जइ, जिणकप्पमाइमहिलसइ । अप्पाउओ व होई, तठ्ठविओ तह वि तस्स पए ||६७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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