Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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'प्रबन्धचिन्तामणि' गत एक अनुप्रासनी युक्तिवाळु पद्य
ह. भायाणी मेरुतुंगना 'प्रबंधचिंतामणि' मां परमारराजा भोजने लगती दंतकथाओमां एक वार शियाळामां रत्रिचर्या निमित्ते नगरमां नीकळेला राजाए एक देवळनी पासे कोई दरिद्र माणसने ठंडीथी रक्षण मेळववा तेनी पाशे कशुं साधन न होवाथी पोतानुं दुःख एक पद्यमां वर्णवतो सांभळ्यो. पछी रात पूरी थतां राजाए एने सवारे बोलावीने पूछ्य के तुं रात्रे ठंडीथी थतुं दुःख व्यक्त करतो हतो, तो तुं शियाळानी टाढ कई रीते सहे छे.
पेलाए जे कर्तुं ते पद्य एक हस्तप्रतमां नीचे प्रमाणे छे : शीतत्रान पटी, न चाग्निशकटी, भूमौ च घृष्टा कटी निर्वाता न कुटी, न तंदुल-पुटी. तुष्टिर् न चैका घटी ! वृत्तिर् नारभटी, प्रिया न गुमटी, तन् नाथ मे संकटी.
श्रीमद भोज ! तव प्रसादकरटी भक्तां ममापत्तटीम् ॥ "शियाळामां पोतानी दुर्दशा वर्णवतो दीनदरिद्र कहे छे :
'मारी पासे ठंडीथी रक्षण आपनारी गोदडी नथी नथी सगडी; नथी पवनने पेसवा न दे तेवी बंध मढुली; नथी सुभटवृत्ति, नथी जुवान, गोरी पत्नी; नथी चावळनी चपटी. घडीएक पण शांति मळती नथी. मारे भारे संकट छे. भोंय पर पीठ घसतां हुं रात गाळु छु. तो हे महाराज भोज, तारी कृपानो गजराज मारी आपत्तिरूपी भेखडने तोडी पाडो.'
आम अगियार 'टी'कार वाळा पद्यतुं पठन सांभळीने भोजराजे तेने अगियार लाख दानमा आप्या.
संभव छे के 'प्रबंध चिंतामणि'मां मळता आ मुक्तक माटे 'हनुमनाटक' नुं नीचे आपेलुं पद्य (३.२२) प्रेरक बन्युं होय. हतोत्साह अमने प्रसन्न करवा रामलक्ष्मणे दंडकारण्यमां रमणीय पर्णकुटी बनावी. तेनुं आ लक्ष्मणे करेलुं वर्णन
एषा पंचवटी रघूत्तम-कुटी यत्रास्ति पंचावटी पांथस्यैक-घटी पुरस्कृत-तटी संश्लेष-भित्तौ वटी ।
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