Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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उधायं : ?
गकार :
पाठं :
वागण :
उतरपटणउ :
वीसामण :
अखोडा -पखोडा :
सीकी :
काणदोर :
उघ :
ठाबडउ :
डंडासां
मात्रा
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[109]
जैन साधुओए प्रयोजेलुं कोइ वस्तुनुं सांकेतिक नाम जणाय छे । आद्याक्षर परथी संकेतनाम योजातां होय छे। एम होय तो आ गोळ (सं. गुड) होई शके ।
ऊननां जाडा वस्त्रनो टूकडो, जे जैन साधुना रजोहरणनी हांडी पर वींटाय छे ।
वींटवानुं वस्त्र, रूमाल ।
उतरपटो, पथारी पर पाथरवानुं वस्त्र, ओछाड; (सं. उत्तरपट्ट)
सेवा, पगचंपी; (सं. विश्रामणा ।
शरीरनां पडखां, पासां; (दे. अक्खोडा, पक्खोडा) । गुजरातीना 'अडखे पडखे' शब्दनुं मूळ आमां देखाय छे.) ।
झोळी; (दे. सिक्का) । सरवावो
-
गु. 'सीकुं'
कंदोरो; 'काण'नुं मूळ गवेषणीय छे ।
ओघारियुं, जैन साधुना रजोहरणने वींटवानुं ऊननुं वस्त्र; (सं. अवग्रहावारक) ।
ठाम, ठामडुं, माटीनां वासण |
लांबी लाकडीना छेडे ऊनना दोरा बांधीने बतावेलुं जैन साधुनुं एक उपकरण;
टीपमां आ शब्द बे जग्याए आवे छे : “पोतानी मात्राना " ( बोल १०) तथा "माहरी मात्रानुं" (बोल ३४) । संदर्भ जोतां 'आवश्यकता', 'खप' अर्थ सूचित थाय छे । (सं.
मात्रा) ।
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