Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 115
________________ 110 हेमचन्द्राचार्यनी काव्य-व्युत्पत्ति-सूचक एक वधु उदाहरण ह. भायाणी 'छन्दोनुशास'ना सातमा अध्यायमां अपभ्रंश छंद सिंहपद- हेमचंद्राचार्ये जे स्वरचित उदाहरण आपेलुं छे, तेमां कालिदासकृतं 'रघुवंश'ना सोळमा सर्गना पंदरमा पद्यनो प्रतिशब्द होवा बाबत में ध्यान खेंच्युं छे (जुओ, 'अनुसंधान-१', १९९३, पृ. ८; तथा 'छन्दोनुशासन'नो अनुवाद, १९९६, पृ. १५१-१५२). त्यां में कह्यु हतुं के 'सिंहपय' नाम गूंथाय ते रीतनुं उदाहरणपद्य रचवा माटे हेमचंद्राचार्यने 'रघुवंश'ना उपर्युक्त पद्यनुं अवलंबन लेवा माटे संस्मरण थयुं, जेने तेमना 'रघुवंश'ना अनुशीलननु, काव्यरसना भावकत्वनुं अने तीक्ष्ण स्मृतिनुं सूचक गणी शकीए. आ वातनुं समर्थन करतुं एक बीजुं उदाहरण हमणां मारा लक्षमां आव्यु. "देशीनाममाला' ना छठ्ठा वर्गना ११०मा सूत्रमां नीचेना देश्य शब्दो अर्थ साथे नोंध्या छ : मंतेल्ल, मयणसलाया = सारिका; मल्हण = लीला; मंधाओ, महायत्तो = आढ्य; महेडो = पंक. आ शब्दोने गूंथी लईने हेमचंद्रे रचेली उदाहरण-गाथा अने तेनो अर्थ (बेचरदास दोशीना अनुवाद अनुसार) नीचे प्रमाणे छ : एतम्मि महायत्ते मल्हंती णव-महेड्डरुह-णयणा ।। पाढइ मंधाय-वहू मयणसलायापिएत्थ मंतेल्ली ।। 'जेने सारिका-मेना प्रिय छे एवो ए धनसंपन्न प्रिय ज्यारे आवे छे त्यारे महालती-लीला करती, तथा ताजा कमळनी जेवां नयनोवाळी ए धनाढ्यनी वह अहीं सारिकाने-मेनाने पढावे छे.' आपणने तरत ज कालिदासना 'मेघदूत'ना जाणीता पद्य (सुशीलकुमार देना संपादन प्रमाणे क्रमांक (८२)ना उत्तरार्धनुं स्मरण थशे : पृच्छंती वा मधुरवचनां सारिकां पंजरस्थां कच्चिद् भर्तुः स्मरसि रसिके त्वं हि तस्य प्रियेति ॥ सारिका वाचक शब्दनो समावेश करतुं उदाहरण रचतां हेमचंद्राचार्यनी स्मृतिमां आ 'मेघदूत'नो संदर्भ जाग्रत थाय छे तेथी तथा शरूमां निर्दिष्ट उदाहरणथी तेमनी कालिदासप्रीति प्रगट थती होवा- आपणे जरूर मानी शकीए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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