Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 118
________________ [113] तात्पर्य एवं छे के उक्त परिस्थितिमां गमे त्यारे पतिने युद्ध करवा जर्बु पडे अने युद्धमां ते खपी जाय. तख्तदान रोहडिया संपादित 'दुहो दशमो वेद' ए परंपरागत तेम ज वर्तमानमां रचायेल दुहाओना संग्रहमां क्रमांक ३२ तरीके आपेलो नीचेनो दुहो उपर्युक्त दोहा साथे सरखाववा जेवो छ : अरि नेडा पियु बंकडो, सायधण हे कुळ-शुद्ध । हालो नणदी हेळवा, (हवे ) अजैया कुंवर दूध ।। अर्थ : शत्रु निकटमां छे, पियु बंको-पराक्रमी छे । अने हुं तेनी प्रिया शुद्ध कुळनी छु । हे नणंद, चालो आपणे कुंवरने बकरीना दूधथी हेळवीए'। __ तात्पर्य एवं छे के पति रणमां खपी जशे. पोते ऊंचा कुळनी होवाथी पाछळ सती थशे । एटले पछी बाळ कुंवरने बकरीनुं दूध पाईने उछेरवो पडशे । तो तेने अत्यारथी ज एनो हेवायो करी दईए, जेथी पाछळथी तेने ए अरुचिकर न लागे । जूना दोहामा नायिकानो डर व्यक्त थयो छे, तेने, बदले अहीं ए भावी निश्चित होवानुं अने एवी परिस्थिति पहोंची वळवा अत्यारथी तैयारी करवानुं नायिकाना वचनो व्यक्त करे छे । आ अर्वाचीन रूपान्तरमा जे उद्दीपन-विभाव कविए योज्यो छे, ते वास्तविक परिस्थितिने तादृश करीने नायकनी वीरता ऊंडा मर्मथी ध्वनित करे छ । बीजां पण बे दोहानां रूपांतर ए ज पुस्तकमांथी नीचे आपुं छु : (१) पाइ विलग्गी ऊंगडी, सिरु ल्हसिउ खंधरसु । तो-वि कटाइ हत्थउउ, बलि किज्जउं कंतस्सु (४४५, ३) आंतरडु पगे वळग्युं छे, शिर स्कंध पर ढळी पड्युं छे, पण तो ये हाथ कटारी उपर ज छे : आवा कंथ पर हुं बलिदान रूपे अपाउं छु (= वारी जाउं छु' ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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