Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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आ रचनानी एकमात्र प्रतिनी झेरोक्स नकल मारी पासे मौजूद छे, जे प्रति डभोईना श्रीरंगविजय- शास्त्रसंग्रह - भंडारनी छे. बे पत्रो धरावती आ हस्तप्रति, तेनी लखावट जोतां १९मा शतकमां लखाई होय तेवुं अनुमान थाय छे. आ रचनानी बीजी प्रति हजी सुधी तो क्यांय जोवामां नथी आवी. कोई सुज्ञ जनना ध्यानमां आनी प्रति होय अथवा आ रचना तथा तेना कर्ता विशे विशेष कांई ज्ञातव्य होय तो तेओ ते विशे माहिती मोकले तेवी विनंति.
श्री शांतिदास - विरचित श्री गौतमस्वामी - रास ( चौपाई ) ||
सरस वचनदायक सरसती, अमृत वचन मुखथी वरसती । सहिगुरु केरुं कीजें ध्यांन, अलवें आलें बुद्धिनिधांन ॥
तीर्थंकर चोवीसे तणा, एकमनां गुण गाउं घणा । वीहरमांन जिन वंदु वीस, सीद्ध अनंता नामुं सीस ॥ सुमत गुपत पालें मन सुद्ध, नमुं साधुं जस नीर्मल बुद्ध मुझ मत सारूं करूं अभ्यास, कहस्युं गौतमस्वामीनो यस ॥ जंबुद्वीप अनो ( पम) भणुं भरतखेत्र ते मांहि सुं मगधदेस वसें अभीरांम, इंद्रपूरी सम गोबरगांम ॥
गढ मढ मंदिर पोल प्राकार, वाविं सरोवर नाती विस्तार लखेसरी कोटीसर घणा, दानेसरी ती नहं तीहां मणा ॥ घणा विप्रतणो तिहां वास, वेद पूरांणनो करई अभ्यास सघलामांहि वडो अधीकार, वसुभुति विप्र घर प्रथवी नारिं ॥ अर्धनिसा पोढि जेतलई, इंद्रभुवन दितुं तेतलई । जागि मनस्युं करई विचार, आवि जिहां छें निज भरतार ।. स्वामि सुपन लधूं मिं इस्यूं, तेहतणुं फल कहो मुझ किस्युं वसुभुत विप्र विचारि कहई, प्रथविदेवि ते सद्दहई ||
तुम कुखहुं सुत होस्यें सार, च्यार वेदतणो भणनार जैन धर्म तै दीपावस्यै, त्रिभुवन पूजनीक ते थस्यें ॥
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