Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुमानमातृका सावचूरि
11 2011
आ प्रति मारा पू. गुरुभगवंतना अंगत संग्रहनी छे । प्रायः सत्तरमा सैकानी आ प्रति पंचपाठी छे । प्रतिमां क्यांय कर्ताना नामनो उल्लेख नथी परन्तु रचनाशैली जोतां कोई जैनमुनिए रचेली होय एवं लागे छे । प्रतिना लेखक श्री पूज्य श्रीसूरसुन्दरसूरिना शिष्य पं. समयमाणिक्य गणिना शिष्य छे अने तेमणे श्रीसुन्दरतीर्थ गणि माटे आ प्रति लखी छे एवं तेमांना उल्लेखथी स्पष्ट जणाय छे। प्रतिनी किनारी फाटी गयेल छे पण अक्षरो सुवाच्य छे अने शुद्धि सारी छे । अनुमानमातृका नामक आ प्रकरणमां नैयायिक दर्शनना मते अनुमान खंडनुं प्रारंभिक अभ्यासी माटे मार्गदर्शन करेल छे । प्रकरणना कुल १३ श्लोको छे अने तेनी नानकडी अवचूरि पण आपेल छे, जे स्वोपज्ञ प्रतीत थाय छे.
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आज प्रतिनी बीजी पण एक नकल मळेल छे जे पण पंचपाठी अने प्रायः सत्तरमा सैकानी छे । लेखक पं. ज्ञानविमल गणि छे । अक्षरना मरोड अने अशुद्धिओ जोतां लेखके अभ्यासकालमा लखेल होय तेवुं लागे छे ।
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संपादननो अनुभव बिलकुल नथी छतांय अभ्यासीओने उपयोगी थाय ते माटे पू. गुरुमहाराजनी प्रेरणाथी यथामति संपादित करी अत्रे रजू करेल छे । ॥ अनुमानमातृका ॥
सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय
१. पण्डितैः । २ पर्वते न ( ? ) अग्निः ।
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अविनाभूताल्लिङ्गाद्विज्ञानं लिङ्गिनोऽनुमानं स्यात् । लिङ्गस्य लिङ्गिना सह या व्याप्तिः सोऽविनाभाव: ॥ यौगदृगपेक्षया तत्पञ्चांशं ते प्रतिज्ञया (१) हेतु: ( २ )
दृष्टान्तः (३) सोपनयो ( ४ ) निगमनम् (५) इति निगदिता विदुरैः ||२|| श्रितसाध्यधर्म्मपक्षाऽपरनामकधर्मिगीः प्रतिज्ञाख्यः ।
प्रथमो यथेह पृथ्वीधरे बृहद्भानुरिति हेतुः ॥ ३ ॥ हेतुत्वाभिव्यञ्जकविभक्तिका लिङ्गवाग् यथा घूमात् । तद्व्याप्ते रुपदर्शनभूर्दृष्टान्तोऽथ सा द्वेधा ॥४॥
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