Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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कुमतवृंदवारणकेसरी मिथ्यातिमिर हरि यमहरी
वादीजनना मोड्या मान । श्रीहीर० ४ ॥
ओशविंश उदयो जगीभाण
सूत्रअरथ परंपारीनो जाण,
आपी भवीयण समकितदान | श्रीहीर० ॥
धन नाथी जिणि उअरी धर्यो
धन कुंरा कुलि तुं अवतर्यो, जिनशासनं जिणई लाधुं मान । श्रीहीर० ॥
श्री आणंदविमल सूरि महिमावंत
श्रीविजयदान भगवंत,
श्री हरखविमलसीस करइ गुणगान । श्री हरी.
॥ कलस ||
प्रधान पंडित महीअ मंडित कुमतिखंडन सुरगुरो गुरुभाव निरमल करी मंगल नारीअपच्छर जयकरो जयविमलकारक भव्यतारक मूरतिमोहन सुरतरो
तपगच्छदिनकर संघसुखकर जयो श्रीहीरविजय सूरीश्वरो ॥ ८ ॥
इति श्री हीरविजयसूरिनी सज्झाय
समाप्त
|| गणिजयविजयलिखितं ॥ श्री : ॥
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