Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 103
________________ [98] Jain Education International कुमतवृंदवारणकेसरी मिथ्यातिमिर हरि यमहरी वादीजनना मोड्या मान । श्रीहीर० ४ ॥ ओशविंश उदयो जगीभाण सूत्रअरथ परंपारीनो जाण, आपी भवीयण समकितदान | श्रीहीर० ॥ धन नाथी जिणि उअरी धर्यो धन कुंरा कुलि तुं अवतर्यो, जिनशासनं जिणई लाधुं मान । श्रीहीर० ॥ श्री आणंदविमल सूरि महिमावंत श्रीविजयदान भगवंत, श्री हरखविमलसीस करइ गुणगान । श्री हरी. ॥ कलस || प्रधान पंडित महीअ मंडित कुमतिखंडन सुरगुरो गुरुभाव निरमल करी मंगल नारीअपच्छर जयकरो जयविमलकारक भव्यतारक मूरतिमोहन सुरतरो तपगच्छदिनकर संघसुखकर जयो श्रीहीरविजय सूरीश्वरो ॥ ८ ॥ इति श्री हीरविजयसूरिनी सज्झाय समाप्त || गणिजयविजयलिखितं ॥ श्री : ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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